आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Wednesday, March 11, 2009

हम जैसा चाहते हैं वैसा ही तत्काल क्यों नहीं हो जाता।

हम कभी कभी सोचते हैं, कि हम जैसा चाहते हैं वैसा ही तत्काल क्यों नहीं हो जाता। काश ऐसा होता कि कि हम जैसा चाहते वैसा ही हो जाता तो कितना मजा आता। प्रस्तुत कहानी में इसी प्रकार की एक घटना को कहानी रूप में दिया गया है कि अगर प्रभु हमारी चाहना पर तत्काल हमारी चाहत पूरी कर देते तो क्या क्या हो सकता था।

एक बार एक शिकारी घने जंगल में शिकार को गया। शिकार का पीछा करते करते वह रास्ता भटक गया और एक बीयाबान जंगल में पहुंच गया। उसका अंग अंग पूरी तरह थक चुका था। विश्राम करने की गरज से वह पेड़ की छाँव में जाकर बैठ गया। उसे यह ज्ञान नहीं था कि वह जिस पेड़ के नीचे बैठा था वह कल्प वृक्ष था।ं शिकारी बहुत लम्बे समय तक शिकार का पीछा करते रहने के कारण न केवल थक चुका था वरन उसे बड़ी जोर की भूख भी लगने थी। उसने सोचा कि काश इस समय भोजन मिल जाता तो मजा आ जाता। कल्पवृक्ष के नीचे तो जो इच्छा करो वह मिल जाता है। सो जैसे ही उसके मन में भोजन का विचार आया, उसका मनपंसद भोजन थाली में सजकर उसके सामने आ गया। भोजन की थाली देखकर वह हैरान हो गया कि अचानक थाली कहाँ से आ टपकी। परन्तु भूख के मारे उसका दम निकला जा रहा था। वह तुरंत ही भोजन करने लगा।

खाना खाते खाते उसके मन में विचार आया कि यह थाली आखिर आई कहाँ से? दूर दूर तक तो आदमी का नामोनिशान नहीं है। फिर विचार आया कि कहीं ये कोई भूत प्रेतों की माया तो नहीं है। भूत प्रेतों को विचार मन में आने की देर थी कि कल्पवृक्ष के प्रभाव से तुरंन्त वहाँ पर भूत प्रेत आ गए। उनको देखते ही वह घबरा गया और डर के मारे बोला, कि अरे मारे गए। उसका सोचना और बोलना था कि भूत प्रेतों ने उसे मारना शुरू कर दिया। पिटते पिटते शिकारी के मन में आया कि ये भूत प्रेत तो मुझे जिन्दा नहीं छोड़ेंगे, मार ही डालेंगे। इस विचार के मन में आते ही भूत प्रेतों ने उस शिकारी को मार डाला। बताओ कैसी रही मन में विचार आते ही कार्य पूर्ण होने की स्थिति। इसलिए कहा है कि प्रभु ने हर व्यवस्था हमारे कल्याण के निमित्त बनाई है। अगर उस शिकारी के मन में निगेटिव विचार नहीं आते तो वह पिटाई एवं मृत्यु से बच सकता था। इसलिए सदा पौजीटिव सोच रखो। रुद्र निश्चित कल्याण ही करेंगे।

No comments: