आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Thursday, March 19, 2009

जिज्ञासा और समाधान


जज्ञासा- महाराजजी, धर्म को लेकर बहुत सी बातें कही जाती हैं। वेद कुछ कहते हैं, लोकाचार कुछ कहता है जबकि व्यवहार में देखने पर कुछ और ही सिद्ध होता है। ऐसी स्थिति में क्या किया जाए। किसे वरीयता दें? -कु० पूनम नई दिल्ली

समाधान- जिनके जीवन में धर्म श्रेष्ठ है, उन महापुरुषों का संग करो। धार्मिक व्यक्ति के जीवन में इन तीनों की एकरूपता होगी। जिस के जीवन में इन तीनों की एकरूपता नहीं वह धार्मिक नहीं हो सकता। हां धर्मान्ध हो सकता है। सूक्ष्मतत्व इन्द्रियों की पकड़ से बाहर है। बुद्धि ज्ञान पर आधारित होने के कारण धर्म का निर्णय करने में सक्षम नहीं है। इसलिए सद्शास्त्र सम्मत जीवन जीने वाले सद्पुरुष का सत्संग को वरीयता दें।

जिज्ञासा- माराजश्री कृपया यह बजाएं कि आध्यात्मिकता और धार्मिकता में क्या अंतर है। -बचन सिंह तेवतिया

समाधान- मंजिल और रास्ते का। आध्यात्मिक होना लक्ष्य है जबकि धर्म के रास्ते पर चलकर व्यक्ति नैतिक होता है और वही आध्यात्मिकता सिखाती है।

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