आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Saturday, March 21, 2009

जिज्ञासा और समाधान 2

जिज्ञासा- महाराजजी नीतिवान और धर्मज्ञ भी क्यों अपने ज्ञान के विपरीत कार्य कर जाता है? धर्म के मार्ग पर चलने वाले व्यक्ति परेशान रहते है और बेईमान मजे मार रहे है, ऐसा क्यों हो रहा है? -कविता उपाध्याय, अलीगढ़

समाधान- स्वभाव के कारण ऐसा हो जाता है। मनुष्य द्वारा किए गए कर्मों से उसका स्वभाव बन जाता है। उसका यह स्वभाव उससे ज्ञान के विपरीत कार्य करा देता है। इसीलिए तो गोस्वामी जी ने कर्म को प्रधानता दी है। ÷÷कर्म प्रधान विश्व रचि राखा ............... ........'' सब कुछ इस पर आधारित है। कर्म जो हो चुका वह प्रत्यक्ष में हमें नहीं दिख रहा। हमें प्रत्यक्ष में वह स्वभाव रूप में दिखता है, लेकिन उसका मूल तो कर्म ही है। प्रारब्ध को तो स्वीकारना पड़ेगा। लेकिन प्रारब्ध के मूल में भी तो कर्म ही है। इसलिए सद्कर्म करो। क्योंकि पुरुषार्थ सर्वदा श्रेष्ठ है। हमें दिखने वाली परेशानियां उसके प्रारब्ध हो सकते हैं। लेकिन पुरुषार्थ के बल पर स्वयं के तेज से प्रारब्ध को निस्तेज किया जा सकता है।

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