आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Sunday, March 15, 2009

आशा - निराशा

आशा पूर्ण होगी भगवानसे। निराशा पहुँचायेगी भगवानतक। दोनोंके बीचमें लटको मत। दोनों ही मार्ग हैं। किसी एकको पकड़कर चल पड़ो। परमात्माकी ओर चलना, चलते रहना ही शुद्ध जीवन है। प्रेमीको विश्राम कहाँ?

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