मनमोहन! मान मना करिके, किस भांति बताऔ रिझालूँ तुम्हें।
कुछ तो अरमान मिटे दिल का, इस छाती से नेक लगालूँ तुम्हें॥
अब और विशेष न कामना है, बस अंक में श्याम बिठालूँ तुम्हें।
उरअंतर में ही छुपालूँ तुम्हें, निज प्राणों का प्राण बनालूँ तुम्हें॥
कुछ तो अरमान मिटे दिल का, इस छाती से नेक लगालूँ तुम्हें॥
अब और विशेष न कामना है, बस अंक में श्याम बिठालूँ तुम्हें।
उरअंतर में ही छुपालूँ तुम्हें, निज प्राणों का प्राण बनालूँ तुम्हें॥
मन में है बसी बस चाह यही, प्रिय नाम तुम्हारा उचारा करूँ।
बिठला के तुम्हें मनमन्दिर में, मनमोहिनी रूप निहारा करूँ॥
भरि के दृग पात्र में प्रेम का जल, पद पंकज नाथ पखारा करूँ।
बन प्रेम पुजारी तुम्हारा प्रभु, नित आरती भव्य उतारा करूँ॥
बिठला के तुम्हें मनमन्दिर में, मनमोहिनी रूप निहारा करूँ॥
भरि के दृग पात्र में प्रेम का जल, पद पंकज नाथ पखारा करूँ।
बन प्रेम पुजारी तुम्हारा प्रभु, नित आरती भव्य उतारा करूँ॥
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