आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Tuesday, January 27, 2009

मेरा गुनाह ?

पिछले काफी समय से में कंप्यूटर शिक्ष्हा को ग्रामीण बच्चों को सिखाना चाहता था। गत वर्ष मेरे एक मित्र मेरे पास आए और उन्होंने मुझे बताया की बरेली में आइकावा नामक एक एन गी ओ है जो मुफ्त में कंप्यूटर सिखाते हैं। मैंने उस संस्था की फ्रेंचाइज लेली और इगलास में एक केन्द्र खोल दिया।
बच्चों से केवल १ रुपया फीस ली जाती और पढाने वाले टीचर का तनखा ऐकावा देती। बढिया काम चल रहा था। इसी दौरान मेरे पास एक सज्जन आए और मुझसे बोले की उनके लिए भी ऐसी ही एक संस्था खुल वा देन। उनके सरल आग्रह को सुनकर मैंने सोचा की चलो इनका भी सहयोग किया जाय ।
ऐसा विछार कर मैंने इस योजना के बारे में उनको बताया की किस प्रकार यह संस्था पहले ५०००० रूपये जमानत के रूप में जमा कराती है और उसके उपरांत बच्चे दाखिला लेकर पढ़ते हैं और अध्यापकों एवं कर्मचारियों का वेतन आइकावा से मिलता है। उन्होंने आइकावा के नाम एक ड़ी ड़ी बनवाकर मुझे दे दिया और फार्म भर दिया।
मैंने मानवता के नाते उनका फार्म और ड़ी ड़ी बरेली आइकावा के ऑफिस में जमा करा ड़ी और रसीद लाकर उन्हें देदी। कुछ समय बाद वह संस्थ्हा बंद हो गयी । मुझ सहित लगभग ७००० लोगों के जमानत रासी डूब गयी। इसके लिए हमने पुलिस में रपट कई।
मेरी त्रासदी यह है की जिस व्यक्ति का फार्म मेने जमा कराया वह अब मुझसे आकर तकादा करता है। कभी गोली मरने की बात करता है तो कभी कुछ और। मैं ख़ुद अपने पैसे के लिए परेशान । मैं उससे कहूं की वह भी चल कर रपट कर दे तो भी नही। क्या मानवता के नाते उसके फार्म को जमा कराने के लिए बरेली तक चला जाना गुनाह है। क्या पूछने पर किसी को अपनी राय बता देना गुनाह है।
आप लोग ही बताइये कैसे इस प्रकार मानवता बचेगी। क्या इंसान इंसान के काम न आवे। और अगर आवे तो डाक पहुंचाने के बदले गोली और गालियाँ खावे।

1 comment:

Truth Eternal said...

Sanjay g ,
apne bhaav shuddh rakhiye, aapka hit hi hoga....
baba bharti ki kahani yad aa gayi ,aise mamlon par adhik chintan karenge to jeevan me satkarm nahin ho payenge...
ye to pareekshayen hai ..samay samay par aati rahati hai....
Dhyan se dekhiyega yah annubhav bhi kuchh sikha jayega...