वर्तमान युग में प्रत्येक मनुष्य अपने चहुँमुखी विकास हेतु कुछ न कुछ चाहता है जिसके माध्यम से वह न केवल इस संसार में बंिल्क परलोक में भी सुख, समृद्धि तथा दुःख रहित जीवन व्यतीत करें, इस उहापोह में वह ईश्वरीय मंत्रों का उच्चारण एवं जाप करता है। यद्यपि वह भरपूर यत्न करता है कि इनके द्वारा सत्य जीवन जीने की कला सीख लें तथा उसका मार्ग सुधर जाये परंतु ऐसा है नहीं क्योंकि इसमें उसका स्वयं का प्रयास ही होता है। पवित्र बाइबल के पुराने विधान में परमेश्वर ने प्रत्येक यहूदी को एक व्यवस्था मूसा के द्वारा सौंपी जिससे वह सत्य जीवन जियें यह जीवन जीने का मूलतंत्र था। जिसे "शीमा'' कहते हैः "हे इस्त्राइल, सुन, यहोवा हमारा परमेश्वर है, यहोवा एक ही है, तू अपने परमेश्वर यहोवा से अपने सारे मन और अपने सारे जीव, और अपनी सारी शक्ति के साथ प्रेम रखना। और ये आज्ञाऐं मूलमंत्र जो मैं आज तुझको सुनाता हूँ, वे तेरे मन में बनी रहेऋ और तू उन्हें अपने बाल बच्चों को समझाकर सिखाया करना, और घर में बैठे, मार्ग पर चलते, लेटते, उठते इनकी चर्चा किया करना, और इन्हें अपने हाथ पर चिन्हानी करके बांधना, और यह तेरी आँखों के बीच टीके का काम दे। और इन्हें अपने-अपने घर की चौखट की बाजुओं और फाटक पर लिखना''
Friday, January 16, 2009
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