आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Saturday, January 24, 2009

रुद्र तो केवल अनुभव करने की चीज है।

भाई बचन सिंह जी बात तो आपकी ठीक सी है पर यह बात स्पष्ट नहीं हो रही कि शांति का मंत्र से क्या सम्बन्ध है। -आशीष चौधरी अरे यार तू हमेशा मुझे फंसावे के चक्कर में रहै। बोले मीठा बात करई करै। पर आज मैं तुझे समझा के ही चैन लूंगा। संजय मामा ते कह दीजो मेरी बात को तोड़े मडोड़े नहीं। -बचन सिंह तेवतिया शांति की जरूरत यूं है - कभी रात को नदी के किनारे जाके बैठ के देखो। केवल ओउम्‌ के अलावा कोई दूसरी आवाज सुनाई नहीं देगी। दिन में जब चिल्ल पों है रही होइ तो जानै कहा कहा सुनाई देगौ। मतलब समझौ या बात कौ? नदी जब बहै तो वो भी ओम नाम को सुमिरन करै। जा दिन ये ओम मंत्र को सुमिरन बंद कर देगी वा दिन सरस्वती की तरह से विलुप्त है जावेगी। और फिर वाकौ क्या बन्यौ ये बात तोकूं मालूम है। नहीं मालूम तो मैं बता देता देता हूं। नाला बन गई। लोग बतावें वाकौ नाम अब गोवर्धन नाला बन गया है। बहुत दिन मंत्र बोल्यौ ज्या वजह से से है तो गोपाल भूमि में पर नाले के रूप में। समझे कि नहीं। अरे यार अब भी नहीं समझे। चलो अब दूसरे तरीके से समझावें। ऐसे समझौ, जैसे तुम टेलीफोन प्रयोग कारौ या मोबाइल प्रयोग करौ। मोबाइल खरीद लाए। सिम भी खरीद लाए। नेटवर्क भी चल रहा है। परन्तु तुम वाते बात नहीं कर रहे हौ। अगर कोई फोन पर घंटी आवै तुम कोई उत्तर नहीं दो। या उत्तर देने की बजाए अन्ट शन्ट बकना शुरु कर दो। क्या इस फोन का कोई मतलब है। जब सब कुछ सही चलेगा तभी तो इस मोबाइल का उपयोग है। ठीक इसी तरह मंत्र का सही प्रयोग करना सीखो। बड़े किस्मत वाले हो कि तुम्हें रुद्र को अनुभव करने का मौका मिला है। अगर मंत्र जैसी छोटी चीज को नहीं समझे तो रुद्र को तो कैसे भी नहीं समझ सकते। मंत्र तो फिर भी सुनाई देता है, लेकिन रुद्र तो केवल अनुभव करने की चीज है। संजय मामा के सहारे कब तक चलोगे.................. -बचन सिंह तेवतिया

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