आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Thursday, January 8, 2009

मुझको अपने गले लगलो ...............


प्रस्तुती : शशि बाला अग्रवाल,

33, सरस्वती विहार अलीगढ़ 0571-2743847

यहाँ मैं अपनी एक कविता प्रस्तुत करना चाहती हूँ:

भ्रूण हत्या पर गर्भा से कन्या कह रही है {यह कल्पना की गई है}

मुझको अपने गले लगले ईया मेरी प्यारी मां

तुमको क्या बतलौं मैं की तुमसे कितना प्यार है॥

भाई से कुच्छ ना मंगु मैं,ना पापा से आस करूँ।

अपने बाल पेर जिंदा रहकर, जीवन से संघर्ष करूँ॥

कभी किरण बेदी बनकर सेवा से नाता जोड़ू।

तुमको क्या समझौं मैं की तुमसे कितना प्यार है,

मुझको अपने गले लगलो...............

कभी बनू शुषमा स्वराज मैं, और काबी इंदिरा गाँधी,

कभी बनू मैं मायावती तो, और कभी सनसनी पारी।

कभी बनू मैं प्रतिभा पाटिल,टन मान तुझ पेर वरुण॥

तुमको क्या बतलौं मैं की तुमसे कितना प्यार है।

मुझको अपने गले लगलो....................

मान मेरी टू कहा मान ले, तेरा मान हर्षित कर डून,

दुनिया मैं आ जाने दे टू, उँचे पद पेर कम करू,

चाहे कुच्छ भी बन जौन मैं, मनसा प्युरे कर डून॥

कैसए हो एहसास तुम्हे की, तुमसे कितना प्यार है।

मुझको अपने गले लगलो ...............

1 comment:

ashish said...

bahut sunder kavita hain