हज+रत मोहम्मद ने समाज सुधार विच्चेषकर नारी की स्थिति सुधारने के क्रान्तिकारी प्रयास किए थे। उन्होंने कन्याभ्रूण हत्या पर पाबन्दी लगाई थी, तथा स्त्री को सम्पत्ति पाने तथा उसकी वसीयत करने का अधिकार दिया था। स्वच्छंद बहुपत्नी प्रथा पर लगाम लगाई थी तथा स्त्रियों को अपना दहेज रखने की इजाज+त दी गई थी। फिर भी आज अधिकांच्च धर्मों में वंच्च तो पुरुष के नाम से ही चलते हैं। अपने वंच्च को आगे बढ़ाने की चाह लोगों का पुत्र के प्रति रुझान और बढ़ा देती है। ऐसे में धर्माचार्यों का उत्तरदायित्व बनतस है कि वे लोगों को यह भी बताऐं कि कन्याभ्रूण या च्चिच्चु की हत्या करके वे समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्व को तो पूरा नहीं ही कर रहे हैं साथ ही यह इतना घृणित पाप है कि इससे मुक्ति संम्भव नहीं कन्याभ्रूण की हत्या करके उस पाप पर अपने वंच्च की बेल को आगे बढ़ाने से उनका वंच्च कलंकित होगा- उसका मान, सम्मान, सम्पत्ति स्वास्थ्य का क्षय होगा। जिन बुराइयों की जड़े धर्म में अधवा इसके गलत vyaakhhyaa में है उनका उन्मूलन धर्म के माध्यम से ही सम्भव है क्योंकि "धर्म मूल्यों तथा मान्यताओं का वह युग्म है जो हम अपने मन मस्तिष्क पर धारण करते हैं।'' मौलवियों को भी लोगों को बताना चाहिए कि हज+रत मोहम्मद की पत्नी आयेच्चा इस बात का उदाहरण है कि हज+रत साहब स्त्रियों के द्वारा स्मरण में ंबजपअम हिस्सेदारी के पक्षधर थे।
Monday, January 5, 2009
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