बहुत समय पहले की बात है, एक पराक्रमी राजा शिकार करने गया। घनघोर जंगल में राजा के काफिले पर हिंसक जानवरों ने हमला बोल दिया। अत्यंत वीरता से लड़ने के बावजूद राजा के सभी अंगरक्षक मारे गए और राजा बुरी तरह घायल होकर मूर्छित हो गया।
कुछ समय के बाद एक चरवाह वहां होकर गुजरा। उसने घायल पड़े राजा और उसके अंगरक्षकों के शवों को देखा। उसने विचार किया कि यदि घायल को घर ले जाकर उसे ठीक किया जा सकता है। उसने घायल राजा को उठाया और अपनी झोपड़ी में ले आया। उसने राजा के घावों पर हल्दी इत्यादि का लेप लगाकर मरहम पट्टी की। कुछ समय में राजा को होश आ गया। उसने चरवाहे से पूछा कि क्या वह जानता है कि वह किसका इलाज कर रहा है। चरवाहे ने कहा, 'नहीं, मैं तो मानवता के नाते एक घायल की सेवा कर रहा हूं।
राजा ने स्वस्थ होकर उसे बताया कि वह उस देश का राजा है और उसे इनाम देना चाहता है। चरवाहे ने कहा कि वह तो अपनी अवस्था में प्रसन्न है, उसे कुछ इनाम की अभिलाषा नहीं है। कुछ समय में राजा के चाकर उसे ढूड़ते हुए वहां पहुंच गए और राजा राजधानी को चल दिया। चलते हुए राजा ने चरवाहे और उसकी पत्नी का आभार व्यक्त किया और अपनी मुद्रा देते हुए बोला कि उसे जब जो आवश्यकता हो उससे आकर ले सकता है। इस मुद्रा को दिखाने पर उसे नगर में कोई भी उसके पास पहुंचा देगा। शेष अगले अंक में यानी कल ............
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