आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Saturday, January 17, 2009

मंत्र की सच्चाई आखिर है क्या जिससे सत्य जीवन व्यतीत किया जाये।

कालांतर में इसरायिलयों ने इस मंत्र को न केवल उच्चारण तथा जाप किया अपितु अपने माथे पर एक डिबिया में रखकर बांधना, तथा बाजुओं पर ताबीज+ चौड़ी करके बांधना आरंभ किया। परंतु एक विशेष बात "मन में रखना'' पूर्णतः दरकिनार कर दिया फलतः मूलतंत्र जानकर, जपकर, उच्चारण करके भी गलतियाँ, बुराईयाँ तथा पाप-दर-पाप करते गये तथा यह सब आडम्बर हो गया और सत्य जीवन के मार्ग से भटक गये। तब प्रश्न उठता है कि मंत्र की सच्चाई आखिर है क्या जिससे सत्य जीवन व्यतीत किया जाये। प्रभु यीशु मसीह ने उपरोक्त मंत्रों को नया आयान तथा वास्तविकता प्रदान की। उन्होंने कहाः "तू अपने प्रभु, अपने परमेश्वर को सम्पूर्ण मन, सम्पूर्ण प्राण, सम्पूर्ण बुद्धि एवं सम्पूर्ण शक्ति से प्रेम कर तथा अपने समान अपने पड़ोसी को प्रेम कर। यही जीवन जीने का 'मूल मंत्र' नई आज्ञा है। ईश्वरीय मंत्र हमारे जीवन का सम्पूर्ण आधार है। इनके माध्यम से न केवल ईश्वरीय रहस्यों का पता चलता है वरन्‌ सत्य जीवन जीने की कला भी आती है परंतु यह स्वयं से नहीं हो सकता जब तक परमेश्वर का अनुग्रह प्राप्त न हो। अनुग्रह प्राप्त करने हेतु हमें परमेश्वर पर निर्भर होना पड़ेगा। निर्भरता से तात्यपर्य है अपने आपको सम्पूर्ण रीति से परमेश्वर को सौंप देना। सौंपना अर्थात्‌ मन, प्राण, बुद्धि, शक्ति से परमेश्वर को प्रेम तथा अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम है।

1 comment:

Truth Eternal said...

Prem hi Parmeshwar ki prapti ka moolmantra hai