आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Sunday, January 11, 2009

हम किधर जा रहे हैं?

बच्चों का मन कोमल होता है उस पर पड़ी छाप आजीवन नहीं मिटती। आज बच्चा टी.वी., इंटरनेट आदि के माध्यम से बहुत कुछ जान चुका है, तो बेहतरी इसी में है कि उसे इतना ज्ञान अवच्च्य दिया जाए कि वह इस खुले माहौल में रहते हुए पाप व बदी के रास्ते से बच सके। गर्भपात सिर्फ कुछ अति विच्चेष परिस्थितियों में उचित है, अन्यथा भ्रूण हत्या की ही रोकथाम को जानी चाहिए। कन्याभ्रूण परीक्षण पर और कड़ाई से लगाम लगाने के साथ-साथ उन चिकित्सकीय सुविधाओं पर भी पाबन्दी लगाई जानी चाहिए, जिससे माता-पिता पहले से ही सुनिच्च्िचत कर सकते हैं कि बच्चा किस लिंग का हो इनमें अण्डे तथा वीर्य का निेपवद, चाइना डिच्च में बाहरी रूप नियन्त्रित परिस्थितियों में करवा कर सुनिच्च्िचत किया जाता है कि नर भ्रूण ही तैयार हो फिर इसे माँ के गर्भ में स्थानान्तरित कर दिया जाता है। भ्रूण हत्या से, कन्या भू्रण हत्या और अब एक नई समस्या कि बच्चे का लिंग पूर्व में ही सुनिच्च्िचत करने की सुविधाऐं। हम किधर जा रहे हैं?

1 comment:

Sadhak Ummedsingh Baid "Saadhak " said...

स्वामीजी रूक ना सके, कुसंस्कार की दौङ.
टी.वी.क्या माहौल ही, करे परस्पर हौङ.
करे परस्पर हौङ, कि संस्कति नष्ट हो कैसे.
भारत-भाग्य-सितारा, जल्दी अस्त हो कैसे.
कह साधक अब करो गुजारिश उसे स्वामीजी.
केवल ईश्वर पलट सके, दुष्चक्र स्वामीजी.