इसरायली परमेश्वर को एक संपोषक के रूप में देखते हैं जिसने अपनी सामर्थ से सम्पूर्ण सृष्टि को रचा तथा वह उसकी चिंता करता है। भजन ८ः४-५ तथा १०४ः१०-३० में भजनकार अपने प्रशंसा गीत में परमेश्वर को संपोषक मानता है। संसार को बनाकर केवल उसे ऐसे ही नहीं छोड़ा है परन्तु वह उसे निरंतर संभाले हुए है। ÷÷तू पशु के लिए घास और मनुष्य के लिए वनस्पति उपजाता है, जिससे मनुष्य धरती से भोजन वस्तु उत्पन्न करें।'' उत्पत्ति के प्रथम अध्याय में तीसरे दिन परमेश्वर ने वनस्पतियों तथा वृक्षों को उपजने की आज्ञा दी। इसी सत्य को भजन के उपरोक्त पद में बताया गया है। यहाँ पर जंगली पशुओं तथा मनुष्य दोनों के लिये परमेश्वर ने वनस्पतियों तथा पेड़ पौधों को उपजाया है। ÷÷उपजाना'' हेतु मूल इब्रानी शब्द का अर्थ है ÷÷खेती करना''। तात्पर्य यह है कि मनुष्य का कार्य है खेती करना, नाश करना नहीं तथा परमेश्वर मनुष्य एवं पशुओं का समान रूप से संपोषक है। भजन १०४ः३० में भजनकार एक गम्भीर सत्य को प्रगट करता है जिसमें परमेश्वर सभी जीवों की रखवाली करते हैं। "आत्मा'' तथा "श्वास'' हेतु एक ही मूल इब्रानी शब्द प्रयोग में लाया जाता है। उक्त पद में अर्थात् परमेश्वर का आत्मा के द्वारा पशु तथा वनस्पतियाँ बनाये जाते हैं। यह विचार भी बताया है कि परमेश्वर संपोषक है तथा वह इस प्रक्रिया को निरंतर करता है। "सब कुछ परमेश्वर के आत्मा द्वारा सृजा गया है जो निरंतर पृथ्वी के प्राकृतिक जीवन को साल दर साल नया करता है'' तात्पर्य यह कि परमेश्वर का हस्तक्षेप नियनित रूप से प्रकृति में है अतः हमें प्रकृति का आदर करना चाहिए तथा परमेश्वर की तरह प्रकृति का सम्मान कर उसकी देखभाल करना चाहिए।
Sunday, February 22, 2009
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