आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Friday, February 6, 2009

मुझे आज पता चला था कि आज मेरा जन्म हुआ है।

गतांक se आगे ..........

उस दिव्य की स्नेह व ज्ञानयुक्त बातें सुनकर मेरी आंखें भर आईं और मैं जोर जोर से रोने लगी। मैंने कहा हे दिव्य शक्ति मुझे कोई ऐसा उपाय बताइए जिससे मैं इस अज्ञान रूपी अंधकार को खत्म कर सकूं। मेरी विनती स्वीकार हुई और, इस प्रकार उस दिव्य ने मेरे हृदय में ज्ञान रूपी दिव्य दीपक जला दिया। बस फिर क्या था? मेरे मन का अज्ञान रूपी अंधकार दूर हो गया। इस अंधकार के दूर होते ही मैंने देखा, "मेरे सामने कोई और नहीं मेरे मां स्वरूप दिव्य गुरुदेव थे। मैंने उन्हें नतमस्तक होकर प्रणाम किया और अपने मन में बार बार यही सोचने लगी कि मैं तो कहती थी कि मैं बड़ी हो गई हूं, मैं इतने साल की हो गई हूं। लेकिन वास्तविक रूप से तो मुझे आज पता चला था कि आज मेरा जन्म हुआ है। आज ही नहीं अब, इसी पल, इसी क्षण आध्यात्मिक दुनिया में एवं अब तो मेरा बचपन शुरु हुआ है। और इस तरह मैं अपनी आध्यात्मिक मां से प्रार्थना करने लगी कि हे मां स्वरूप गुरुदेव मुझे अपनी नजरों के सामने ही रखना। मुझे अपनी नजरों से इधर उधर मत करना क्योंकि आपकी पुत्री अभी बहुत छोटी है। आपने ही एक बार कहा था, "जब बच्चा छोटा हो तब मां बाप को उसे नजरों के सामने रखना चाहिए और जब वह बड़ा हो जाय तब उसे नजरों में रखना चाहिए..........'' इसी प्रार्थना के साथ कि हे दिव्य मां जैसे मुझे राह दिखाई उसी तरह हर भूले भटके को राह दिखाते रहना और...........................॥

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