यन्त्र शब्द संस्कृत मूल ÷यम्' से बना है जिसका अर्थ है नियन्त्रित करना या बांधना। जिसके आधार पर वैदिक जन कहते हैं कि यन्त्र वह जो काबू करे। यन्त्र का शाब्दिक अर्थ है 'मशीन' अथवा कोई 'चिन्ह' जो कि मन की एकाग्रता में सहायक हो। इसका अर्थ किसी उपकरण, मशीन या साधन के रूप में भी होता है। यंत्र शब्द के किसी भी शाब्दिक अर्थ पर दृष्टि डालें तो उसका आशय एक साधन के रूप में ही प्रतीत होता है। तंत्र और मंत्र की प्रस्तावना एवं विवेचना के दौरान ही यह स्पष्ट हो गया था कि तंत्र और मंत्र अपने में अत्यंत प्रभावशाली होने के बावजूद यंत्र पर आश्रित हैं। विश्व में चाहे किसी भी धार्मिक मान्यता या मत के मानने वाले लोग हों वे किसी न किसी यंत्र का प्रयोग किसी न किसी रूप में अपने आध्यात्मिक उन्नयन के लिए अवश्य करते हैं। चाहे मंदिर हो चाहे मस्जिद हो, चर्च हो चाहे गुरुद्वारा, सबका एक अलग वास्तुशिल्प हो सकता है लेकिन मूल भावना सभी में एक ही पाई जाती है। कहीं कोई माला जपता है तो अलग अलग धर्मों में उसके मूंगे अलग अलग पदार्थों से बने हो सकते हैं, उनकी संख्या अलग अलग हो सकती है, लेकिन क्या कोई इनके अस्तित्व को इंकार करता है। कदाचित नहीं।
Friday, February 20, 2009
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