आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Saturday, February 21, 2009

ब्रह्‌माण्ड को समझना है तो पिण्ड को समझो।

हर मत की अपनी पूजा पद्यति अलग हो सकती है, लेकिन सभी में कुछ निश्चित शारीरिक क्रियाएं अवश्य हैं। ये शारीरिक क्रियाएं क्यों सभी में हैं? विचारशील प्राणी इसकी तरफ आकर्षित अवश्य होता है। जिज्ञासा स्वाभाविक रुप से उत्पन्न होती है। कहीं न कहीं इन क्रियाओं के द्वारा शरीर को यंत्रवत किया जाता है। यंत्रवत किया जाना या यंत्र का बनाया जाना बहुत अलग नहीं हो सकता। मनीषियों ने बताया कि मनुष्य का शरीर ब्रह्‌माण्ड की इकाई है। ब्रह्‌माण्ड को समझना है तो पिण्ड को समझो। ब्रह्‌माण्ड की क्रियाविधि समझनी है तो पिण्ड की क्रिया विधि को समझो। ब्रह्‌माण्ड को संतुलित रखना है तो पिण्ड को संतुलित रखो। ईश्वर की सत्ता को विश्व का कोई भी धर्म इंकार नहीं करता। कोई उसे किसी रूप में स्वीकार करता है तो दूसरा किसी अन्य रूप में।

यंत्र की शक्ति को भी कोई धर्म या पंथ अस्वीकार नहीं करता। बस रूप बदलता है। कोई इस शरीर को ही यंत्र मानता है तो कोई कायनात को। सभी धर्मों के मानने वालों के चिह्‌न भी हैं। वे अलग अलग हो सकते हैं। नियंत्रण के औजार के रूप में यंत्र की सम्प्रभुता सभी मतों में दृष्टिगोचर होती है। हिन्दू धर्म सर्वाधिक प्राचीन होने के कारण इसमें यंत्रों के प्रयोग का सर्वाधिक उल्लेख मिलता है। इसमें प्रयुक्त यंत्रों का प्रयोग न केवल आध्यात्मिक वरन भौतिक उन्नयन के लिए भी होता है। इसी क्रम में विभिन्न मतों के विचार प्रस्तुत हैं।

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