किसी भी नजरिए से देखें वैश्वीकरण ने दुनिया को बहुत छोटा कर दिया है। इसके प्रभाव ने न केवल विश्व भर के विकसित, विकासशील एवं अविकसित देशों की आर्थिक स्थितियों को प्रभावित किया है वरन समाज को भी प्रभावित किया है। सूचना तकनीक के क्रांतिकारी परिवर्तनों तथा कामगारों की गतिशीलता एवं देशीय सीमाओं की वर्जनाओं के शिथिल होने से सामाजिक संरचनाएं प्रभावित हुई हैं। वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप पिछले दशक में भारत में निम्न परिवर्तन दिखाई देने लगे हैं-
१ सूचना तकनीक के क्षेत्र में क्रांति आई है।
२ विदेशी मुद्रा भण्डार में वृद्धि हुई है।
३ सीमाओं से बाहर पूंजी निवेश के परिणामस्वरूप वित्तीय संसाधनों का अंतर्राष्ट्रीयकरण हुआ है।
४ बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का प्रभुत्व बढ़ा है।
५ बाजार पर सरकार का अंकुश क्षीण हुआ है।
६ वस्तुओं के उत्पादन के तरीकों में अंतर आया है।
७ कुशल श्रमिकों, तकनीशियनों, प्रबंधकों की गतिशीलता में वृद्धि हुई है।
भारत सनातन परम्पराओं का देश रहा है। लम्बे समय तक मुगल एवं अंग्रजों के साम्राज्य का अंग रहने के बावजूद इसने अपनी सनातन परम्पराओं ने बनाए रखा है। वैश्वीकरण के कारण समाज में एक वर्ग ऐसा भी विकसित हुआ है जो इन परम्पराओं को सामाजिक निर्योग्यताओं के रूप में स्वीकार कर रहा है तो दूसरा वर्ग इन परम्पराओं को बचाए रखने के लिए प्रयासरत है, जिससे समाज के ढांचे में विघटन की छाया पड़ती प्रतीत हो रही है।
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