वैश्वीकरण के कारण भारतीय समाज के रहन सहन पर व्यापक प्रभाव पड़ा है। बंगलौर, गुड़गांव, नौइडा आदि में बने कांक्रीट के जंगल, गगन चुम्बी इमारतें, तेज गति से भागती जिंदगी ने एक नई कार्य संस्कृति को जन्म दिया है। सामाजिक सम्बन्धों का ताना बाना काफी हद तक मशीनी हो गया है। कॉल सेन्टरों में कार्य करती महिलाओं तथा बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के कर्मियों के उच्चीकृत हो रहे वेतनमानों से यह पुष्ट होता है कि वैश्वीकरण के कारण कर्मचारियों की प्रस्थिति में सुधार हुआ है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के विज्ञापनों आदि ने भी मध्य एवं उच्च वर्गीय समाज के रहन सहन के स्तर को उन्नत करने में मदद की है।
अपनी बात को पूर्ण करते हुए मैं यहां यह कहना आवश्यक समझता हूं कि वैश्वीकरण के कारण समाज पर पड़ने वाले प्रभावों पर व्यापक अनुसंधान की आवश्यकता है। मशीनीकृत संस्कृति की ओर बढ़ रहे समाज का अध्ययन इसके अनुकूलन में मददगार साबित हो सकेगा। इसमें शक नहीं कि उदारीकरण के परिणाम स्वरूप हुए वैश्वीकरण, के कारण भारतीय समाज में खुलापन आया है। दुनिया और देश के लोगों में दूरी घटी है। सामाजिक समरसता में वृद्धि हुई है। नागरिकों का जीवन स्तर उच्चीकृत हुआ है। लेकिन यह भी सच है कि वैश्वीकरण के ही कारण परम्परावादियों का आक्रोश भी बढ़ा है। पर्यावरण पर भी वैश्वीकरण की छाया पड़ी है। प्राकृतिक सौन्दर्य को आघात लगा है तथा कृतिमता में वृद्धि हुई है, जिस पर व्यापक शोध आवश्यक है।
No comments:
Post a Comment