आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Saturday, October 25, 2008

फकीरी पाक मुहब्बत सार

कहिवे सुनवे में भली रे है खाँडे की धार।

करिबे सोचे होय ना रे, ना कोई रहे विचार॥

सोचे बोलें बाँनियाँ जीवन का व्यापार।

यहाँ न जीवन मरण है, नहीं जीत और हार॥

जामें ये वाँसा करें रे, सोई सबकौ हार।

अमर जीत यह उर बसै, साज बाज बिन तार॥

पीर फकीरी एक है रे, वसय हीये के द्वार।

रुद्र खजाना प्रेम का, छोड़ि जगत व्यवहार॥

4 comments:

Truth Eternal said...

Kya baat hai.
Good Sanjayji.

vangmyapatrika said...

बहुत खूब . लगे रहे .

vangmyapatrika said...

अच्छी पत्रिका . बहुत खूब . लगे रहे .

Unknown said...

@यहाँ न जीवन मरण है, नहीं जीत और हार॥

यही सत्य है.