उमा कहहु मैं अनुभव अपना। बिन हरि भजन जगत सब सपना॥
जब सब सपना है तो सत्य क्या है? गोस्वामी जी ने तो भगवान शंकर के श्रीमुख से उपरोक्त पंक्तियां कहलवाकर यह सि कर दिया। हरि नाम ही सत्य है। इसके बिना तो अन्य सभी कुछ सपने के समान है। अधिकांश लोग अपने जीवन-धंधे में इतने डूबे रहते हैं कि वे इस वस्तु को जानने की चिंता ही नहीं करते कि जीवन है क्या? और इसीलिए जीवन की बड़ी-बड़ी घटनाएँ, जो एक विचारशील व्यक्ति के लिए गंभीर विचार की सामग्री एकत्र कर देती हैं, सामान्य जनों के हृदय में न कोई आश्चर्य पैदा करती हैं और न उन्हें विस्मय-विमुग्ध ही कर पाती हैं। वे बड़ी से बड़ी घटना को भी साधारण रूप में देखते हैं और अपने जीवन की छोटी छोटी बातों में ही व्यस्त रहते हैं।
भगवान श्री कृष्ण गीता के दूसरे अध्याय के सोलहवें श्लोक में अर्जुन से कहते हैं "असत्य की कोई सत्ता नहीं है और सत्य की सत्ता का कभी विनाश नहीं होता। तत्बदर्शियों द्वारा इन दोनों सत्यों का निरीक्षण हो चुका है।'' हमारे मनीषियों ने स्वीकार किया है कि मिथ्या या माया जगत् की सत्यता से स्वप्न-जगत् की सत्यता अधिकतर है। स्वप्न-जगत् की अपेक्षा जीवन-जगत् की सत्यता अधिक है और जीवन-जगत् की अपेक्षा आत्मा, ईश्वर या अद्वैत के जगत् की सत्यता अधिक है, जो अन्ततोगत्वा परस्पर एक समान हैं। रुद्र संदेश जैसी स्तरीय आध्यात्मिक पत्रिका को व्यक्त एवं अव्यक्त जगत् के प्रत्येक रूप का विचार करना ही पड़ेगा। तभी सत्य मार्ग का निर्धारण होगा।
अधिकांश प्राचीन भारतीय तत्त्वज्ञानियों ने माना है कि ब्रह्म अद्वैत की सत्ता ही केवल सत्य है। ब्रह्म और आत्मा एक है। विश्व माया हैऋ माया का अस्तित्व केवल दिखावटी और सापेक्ष है। लेकिन आगे चलकर कुछ तत्त्वज्ञानियों ने भिन्न मत का प्रतिपादन किया है। उदाहरणार्थ बल्लभाचार्य जी ने यहाँ तक कहा है कि समस्त जगत् सत्य और ब्रह्म का सूक्ष्म रूप है। वैयक्तिक आत्माएँ और जड़ जगत् तत्वतः ब्रह्म के साथ एक हैं। अतः यह जगत् ब्रह्म की ही भाँति नित्य और सत्य है और इसकी उत्पत्ति और विनाश का कारण ब्रह्म की शक्ति है। इसी सत्य का प्रतिपादन विश्व के सात हजार वैज्ञानिक मिलकर करने जा रहे हैं। तब इसे प्रायोगिक भी माना जाएगा। कुछ विद्वानों द्वारा माया-जगत् को असत्य नहीं माना जाता, क्योंकि माया और कुछ नहीं ईश्वर की ही शक्ति है जिसे वह अपनी इच्छा से उत्पन्न करता है। उनके अनुसार जगत् सत्य है यद्यपि हमारे जगत्-संबंधी अनुभव सत्य नहीं हैं। वे इस बात को नहीं जानते कि जगत् ब्रह्म का ही एक रूप है।
भारतीय ही नहीं अनेकानेक पश्चिमी दार्शनिकों ने भी वेदों, उपनिषदों में वर्णित सत्य को स्वीकार किया है। प्रोफेसर एफ. एच. ब्रैडले ने लिखा है कि "प्रत्येक बाह्य वस्तु केवल रूपात्मक दृश्य है और सत्य केवल ब्रह्म में है। उन्होंने लिखा है, "ब्रह्म से अलग कुछ भी सत्य नहीं है और न हो सकता है और जो वस्तु जितनी ही अधिक ब्रह्ममय है उतनी ही अधिक वह सत्य है।'' हेगेल का मुख्य उपदेश भी इसी प्रकार का था। फ़ीक्टे कहता है कि "सच्चा जीवन नित्य में निवास करता है। यह प्रत्येक क्षण में पूर्ण रहता है और यही जहाँ तक संभव हो सकता है सर्वश्रेष्ठ जीवन है। छाया भूत जीवन बदलता रहता है। इसीलिए यह छाया-जीवन निरंतर मृत्यु का जीवन है। सच तो यह है कि उसका जीवन मृत्यु है।'' उपरोक्त परिचय में हम सत्य की प्रस्तावना का परिचय पाते हैं। यह एक अत्यंत महतवपूर्ण विषय है जिसे एक अंक में सहेज पाना सम्भव नहीं। अतः सम्पादक मण्डल ने इस विषय को अगले अंकों में चलाते रखने का निर्णय लिया है। जितने धर्माचार्यों एवं विद्वान विचारकों के विचार हमें प्राप्त हुए हैं उनमें से कुछ को इस अंक में तथा शेष को अगले अंक में प्रकाशित कर निर्णय का प्रतिपादन किया जाएगा।
1 comment:
Ati Sundar Vichar Hai.
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