नेकियाँ साधक को सिदक़ (सत्य) मार्ग पर डालकर उसे सत्यवादी बनाती हैं। सत्यता के मार्ग पर अग्रसर रहने वाला साधक ही सादिक़ (सत्यवादी) कहलाए जाने का अधिकारी है। शेख अबु सईद उल कुरेशी का कथन है कि सादिक वह है जो जाहिर (बाह्य) ठीक हो और बातिन (अन्तर) कभी कभी मनोकामनाओं की ओर आकृष्ट हो। सत्य की राह पर चलने वाला इबादत और इताअत (उपासना और साधना) में रस प्राप्त करता है और प्रभु के जिक्र से उसकी आत्मा जगमगा उठती है। हुज्वेरी का कहना है कि सत्यवादी व्यक्ति वह है जिसका बाह्य और आंतरिक दोनों ठीक हों, और वह अल्लाह की इस प्रकार इबादत करे कि उस अल्लाह के जिक्र से खाना, पीना, सोना और कोई दूसरी चीज उसे न रोक सके। सूफियों ने सत्य की राह पर चलने वालों को नबियों के बाद सबसे बड़ा दर्जा दिया है। इमाम गजाली ने एक हदीस में कहा है कि "सत्य नेकी का मार्ग दिखाता है, नेकी जन्नत का मार्ग दिखाती है। उन्होंने सत्य की पहचान छः निम्नलिखित रूपों में बतायी है :-
१। सत्य (सिदक़) बोल और बात में होना चाहिए।
२। सत्य (सिदक़) इरादों में होना चाहिए।
३. सत्य (सिदक़) निश्चय और संकल्पों में होना
4। सत्य (सिदक़) वायदों को पूरा करने में होना चाहिए।
५। सत्य (सिदक़) ज्ञान में होना चाहिए।
६। सत्य (सिदक़) धार्मिक स्थानों में होना चाहिए।
इन सब अवसरों पर सत्य को अपनाने वाला ही सादिक़ (सत्यवादी) है। अबू अली दक़काक सिदक् को मन की माँगों से पाक रहना बताते हैं। जुनून मिजी सिदक़ (सत्य) को उसी समय पूर्ण मानते हैं जबकि साधक अपनी सच्चाई में एकनिष्ठ हो। अशरफ अली थानवी के अनुसार साधक जिस स्थिति में भी हो, वह चरम उत्कर्ष को पहुँची हुई हो, उसमें कमी न हो। यही सिदक् (सत्य) है। इसी से जो चरम उत्कर्ष को पहुँचा हुआ साधक होता है, उसको सिद्दीक (सत्यवादी) कहते हैं।
प्रस्तुतिः- डॉ. शगुफ्ता नियाज प्राध्यापिका,वीमेन्स कालिज, ए.एम.यू. अलीगढ़
१। सत्य (सिदक़) बोल और बात में होना चाहिए।
२। सत्य (सिदक़) इरादों में होना चाहिए।
३. सत्य (सिदक़) निश्चय और संकल्पों में होना
4। सत्य (सिदक़) वायदों को पूरा करने में होना चाहिए।
५। सत्य (सिदक़) ज्ञान में होना चाहिए।
६। सत्य (सिदक़) धार्मिक स्थानों में होना चाहिए।
इन सब अवसरों पर सत्य को अपनाने वाला ही सादिक़ (सत्यवादी) है। अबू अली दक़काक सिदक् को मन की माँगों से पाक रहना बताते हैं। जुनून मिजी सिदक़ (सत्य) को उसी समय पूर्ण मानते हैं जबकि साधक अपनी सच्चाई में एकनिष्ठ हो। अशरफ अली थानवी के अनुसार साधक जिस स्थिति में भी हो, वह चरम उत्कर्ष को पहुँची हुई हो, उसमें कमी न हो। यही सिदक् (सत्य) है। इसी से जो चरम उत्कर्ष को पहुँचा हुआ साधक होता है, उसको सिद्दीक (सत्यवादी) कहते हैं।
प्रस्तुतिः- डॉ. शगुफ्ता नियाज प्राध्यापिका,वीमेन्स कालिज, ए.एम.यू. अलीगढ़
2 comments:
Lazavab lekh hai. Shukriya
good article
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