काण्ट ने वास्तविक स्वरूप और दृश्य भाग में अंतर माना है। काण्ट ने बुद्धि के तार्किक विश्लेषण द्वारा अपने समय के आदेशवाद तथा संशयवाद का खंडन करके स्वतंत्र परिणाम निकाला था कि संसार जो काल, कारण तथा दिक् से विशिष्ट है, कोई तात्विक सत्यता नहीं रखता, वहाँ यह भी माना है कि इस संसार की कम से कम दृश्य रूप में एक सत्ता है जो व्यावहारिक दृष्टि से सत्य है। जगत् न तो मायारूप ही कहा जा सकता है और न यह वास्तव में ब्रह्म से भिन्न है। कार्य कारण का संबंध एकत्व प्रमाणित करता है। विश्व सत्यतः ब्रह्म है।
ब्रह्म संसार और व्यक्तिगत आत्मा की भाँति स्वयं अपनी इच्छा से प्रकट होता है और उसके सहज गुण में कोई विकार नहीं होता। वही जगत् का समवायि (वास्तु'' तथा निमित्त दोनों ही कारण है। पक्षपात तथा अत्याचार का दोष ब्रह्म पर आरोपित नहीं किया जा सकता क्योंकि बल्लभाचार्य ने जीव को ब्रह्म से भिन्न माना है। उनका कथन है कि जीव जब माया के बंधन से मुक्त हो जाता है तो ब्रह्म के साथ एक हो जाता है।
1 comment:
Maharaj ji se ek prashna hai: MAyA se kaise mukta hon ,jab yah itni satya prateet hoti hai ?
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