भारतीय विचार-धारा का मूल आधार यह है कि विश्व एक हैऋ इसके भीतर या बाहर किसी प्रकार की विभिन्नता नहीं है। कठोपनिषद् में कहा है कि "जो इस संसार में विभिन्नता अथवा अनेकत्व देखता है, वह मृत्यु से मृत्यु को जाता है। अभिन्नता अथवा एकत्व केवल उच्च स्तर की बुद्धि द्वारा ही देखा जा सकता है।'' ब्रह्म की संपूर्ण सत्ता सर्वत्र एक समान है और इसके किसी एक अंग का ज्ञान प्राप्त करना संपूर्ण के ज्ञान प्राप्त करने के समान है। इस प्रकार निरपेक्ष ही सत्य है।
प्रस्तुति : आशीष
1 comment:
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