आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Sunday, October 19, 2008

सत्यः जिसको जानने से जो मालूम नहीं है वह भी मालूम हो जाता है

जब श्वेतकेतु अपने गुरु के यहाँ से अभिमान और आत्म-संतोष से भरा तथा अपने को विद्वान्‌ समझता हुआ घर लौटा तब उसके पिता ने पूछा कि क्या तुम्हारे गुरु ने तुम्हें उस अंतिम सत्‌ का ज्ञान कराया "जिसको सुनने से जो सुनाई नहीं पड़ता, वह भी सुनाई दे जाता है, जिसके ऊपर विचार करने से जिसका विचार नहीं किया था, वह भी विचार में आ जाता है जिसको जानने से जो मालूम नहीं है वह भी मालूम हो जाता है''

श्वेतकेतु ने अपना अज्ञान साफ़-साफ़ स्वीकार कर लिया और पिता से प्रार्थना की कि बताइए वह परम ज्ञान क्या है। तब उसके पिता आरुणि ने कहा कि "जिस प्रकार एक मिट्टी के ढेले का ज्ञान प्राप्त करने से मिट्टी की बनी हुई सब वस्तुओं का ज्ञान हो जाता है, क्योंकि अन्य सब केवल विकार मात्र हैं उनमें केवल नाम और रूप का अंतर है, आधार सबका मिट्टी ही हैं जिस प्रकार एक लोहे के टुकड़े के ज्ञान से लोहे की बनी हुई सब वस्तुओं का ज्ञान हो जाता है, क्योंकि अन्य सब विकारमात्र हैं उनमें केवल नाम और रूप का अन्तर है, आधार सबका केवल लोहा है जिस प्रकार एक कैंची का ज्ञान प्राप्त कर लेने से पक्के लोहे की बनी हुई सब चीजों का ज्ञान हो जाता है- क्योंकि अन्य सब विकारमात्र हैं उनमें केवल नाम और रूप का भेद है और सबका आधार पक्का लोहा है तो उसका पूर्ण ज्ञान हो जाता है, क्योंकि सबका आधार केवल ब्रह्म है जो स्वानुरूप, आत्मस्थ और आत्म-ज्ञात है।'' उपर्युक्त वाक्य का भाव यह है कि प्रत्येक वस्तु जिसका अस्तित्व है, ब्रह्म है और satya है।।

प्रस्तुति : खुशबू choudhary

7 comments:

Truth Eternal said...

Sateek likha hai.

Anonymous said...

Really good attempt

ashish said...

acha likhti hai.

Satyawati Mishra said...

jisko janane se sab jana jata hai, jo sarvatra aur sabme saman hai vahi satya atam brahm hai. jo sabka adhar hai vahi satya brahm hai. jo avinashi aur sadev hai vahi brahm hai. ise jano tab mano nahi to mat mano.pahle jano ise.

Vivek Gupta said...

बहुत सुंदर ! बधाई !

vangmyapatrika said...

श्वेतकेतु ने अपना अज्ञान साफ़-साफ़ स्वीकार कर लिया और पिता से प्रार्थना की कि बताइए वह परम ज्ञान क्या है। तब उसके पिता आरुणि ने कहा कि "जिस प्रकार एक मिट्टी के ढेले का ज्ञान प्राप्त करने से मिट्टी की बनी हुई सब वस्तुओं का ज्ञान हो जाता है, क्योंकि अन्य सब केवल विकार मात्र हैं उनमें केवल नाम और रूप का अंतर है, आधार सबका मिट्टी ही हैं जिस प्रकार एक लोहे के टुकड़े के ज्ञान से लोहे की बनी हुई सब वस्तुओं का ज्ञान हो जाता है, क्योंकि अन्य सब विकारमात्र हैं उनमें केवल नाम और रूप का अन्तर है,
अच्छी प्रस्तुति है .खुशबू

Unknown said...

अपना अज्ञान साफ़-साफ़ स्वीकार कर लेना ज्ञान प्राप्ति की पहली सीढ़ी है. जो जब ब्रह्म को जान लेता है उसे फ़िर कुछ और जानने की जरूरत नहीं रहती, क्योंकि सारा ज्ञान उस ब्रह्म में समाया हुआ है. लेकिन यह आसान नहीं है. आम आदमी तो बस अपना कर्तव्य पूरा करता रहे, उस के लिए यही काफ़ी है.