सत्य एक है। भिन्नता और अनेकता केवल भ्रममात्र हैं। पृथ्वी पर भिन्नता, अनेकता नहीं है। जो यहाँ झूठी भिन्नता अर्थात अनेकता देखता है वह मृत्यु के बाद मृत्यु को प्राप्त होता है अर्थात बार-बार मरता है। इस अप्रमेय और ध्रुव सत् को केवल एकत्व के रूप में देखना चाहिए। वास्तव में देखने वाला केवल 'सर्व' को देखता है और सर्वशः सर्व को प्राप्त करता है।''
वही एक सत्य ब्रह्म है जो अभिन्न और एक है। जब मनुष्य इस ज्ञान को भूल जाता है कि सब कुछ निश्चय ही एक ब्रह्म है तब यह रूपात्मक जगत् या निकृष्ट ब्रह्म सत्य प्रतीत होने लगता है, जहाँ प्रत्येक वस्तु भिन्न और पूर्ण सत्तात्मक प्रतीत होने लगती है-तात्पर्य यह है कि यह माया या भ्रम है।
इसीलिए मैत्रेयी उपनिषद् दोनों ब्रह्म के विषय में साफ़ साफ़ कहती हैं, "ब्रह्म के निश्चय दो रूप हैं- एक साकार और दूसरा निराकार। जो साकार है वह असत्य है और जो निराकार है वह सत्य है।
प्रस्तुति : सुमित्रा सिंह
4 comments:
ज़रा और विस्तार से प्रकाश डालें। वैसे वाकइ बहुत अच्छा लिखे हैं।
Kya Sumitraji wahi hain jo Stae Congress ki Leader hain?
Really achchha likhe hain.
अच्छा लिखा है.बधाई.
@"ब्रह्म के निश्चय दो रूप हैं- एक साकार और दूसरा निराकार। जो साकार है वह असत्य है और जो निराकार है वह सत्य है।
यह ब्रह्मज्ञानियों का सच है. जो ईश्वर को प्रेम करते हैं, उस की भक्ति करते हैं, वह ईश्वर के निराकार और साकार दोनों रूपों को सत्य मानते हैं.
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