ऐसे कितने मनुष्य हैं जो उन वस्तुओं पर गंभीरतापूर्वक विचार करने के लिए ठहरते हैं जो उनके चारों ओर बिखरी पड़ी हैं। प्राचीन भारतीय विचारकों ने भी उचित रूप से विचार करने की इस आवश्यक प्रवृत्ति पर काफ़ी जोर दिया था। वे कहते हैं कि बिना इस विचारशक्ति के मनुष्य उस सत्यासत्य का निर्णय नहीं कर सकता जो उसको वैराग्य, शांति ( मानसिक) और अनिच्छा की ओर ले जाता है जिनके बिना आध्यात्मिक जीवन संभव ही नहीं है। प्लेटो ने भी कहा था कि "दर्शन (ज्ञान) की उत्पत्ति आश्चर्य से होती है'' और इसी आश्चर्य से मनुष्य विचार की ओर उन्मुख होता है अथवा आश्चर्य से प्रभावित होकर मनुष्य विचार करता है।
प्रस्तुति : अदिति उपाध्याय
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