बगदाद के खलीफा हसन एक खुदापरस्त व रहमदिल इंसान थे। उनका सेवक हाशिम उनके संपर्क में आने के बाद अनेक दुर्गुणों का त्याग कर नेकदिल इंसान बन गया था। वह खलीफा के साथ एक फकीर के पास सत्संग के लिए जाया करता था। फकीर उपदेश में कहा करते थे कि जो व्यक्ति हराम की कमाई तथा पराये धन के लालच से बचा रहता है, वह हमेशा सुखी रहता है। एक बार खलीफा बहुत से सेवकों (गुलामोंद्) के साथ बग्घी में बैठकर कहीं जा रहे थे। अचानक घोड़ा फिसल गया और खलीफा के हाथ की थैली झटका लगने के कारण दूर जा गिरी। उस थैली में कीमती हीरे-पन्ने भरे हुए थे, जो सड़क पर बिखर गए। खलीफा ने गुलामों से कहा, "तुम सब तुरंत हीरे-पन्ने बटोर लो। बदले में सबको इनाम दिया जाएगा।' सभी गुलाम हीरे-पन्ने बटोरने में लग गए। खलीफा ने देखा कि हाशिम उनके पास ही खड़ा है। इनाम के लालच में वह हीरे-पन्ने बटोरने में नहीं जुटा। खलीफा ने हाशिम से पूछा, "तुम हीरे-पन्ने क्यों नहीं बटोर रहे हो?' हाशिम ने जबाब दिया, "सबसे कीमती हीरा तो मेरे बिलकुल पास खड़ा है। आप मेरे लिए हीरा ही नहीं, पारस हैं। आपने तमाम दुर्गुणों से मुक्ति दिलाकर मुझे सच्चा इंसान बना दिया है। फिर, मैं हराम की कमाई इनाम में लेकर पाप का भागी क्यों बनूं?' बादशाह उसकी नेकनीयती से बेहद खुश हुए। उन्होंने उसे सेवक से सलाहकार बना दिया।
प्रस्तुति : मानव
No comments:
Post a Comment