आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Monday, April 27, 2009

गीता आज भी उपयुक्त व अनुकरणीय है।

गीता एक सद्गृहस्थ अर्जुन को दिया उपदेश है जहां मृत्यु की भयावहता से कर्म क्षेत्र से पलायन करने की संतुति नहीं है। वहां तो नि:संग भाव से पूर्ण श्रद्धा, पूर्ण मनोयोग, पूर्ण शक्ति से उत्कृष्ट कर्म करने की शिक्षा दी गयी है। गीता में सर्वत्र उल्लास है, उत्साह है, कर्तव्यनिष्ठा है, जीवन का मधुर संगीत है। यह एक योग्य शिक्षक द्वारा योग्य शिष्य को प्रदत्त जीवन जीने की अनूठी शैली है जो आज भी उतनी ही उपयुक्त व अनुकरणीय है।

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