तीर्थ यात्रा का मानव जीवन में बहुत महत्व है। हिन्दुओं में कुम्भ मेलों का आयोजन, मुसलमानों में हज, इसाइयों में वैटीकन यात्रा, सिखों में गुरुस्थानों तथा बुद्ध जातकों के बिहार भ्रमण ऐसे उदाहरण हैं, जिनसे तीर्थ यात्रा का महत्व दिखाई देता है। अति प्राचीन काल से मनुष्य तीर्थाटन करता आ रहा है। गंगा स्नान आदि के लिए भी विशेष पर्वों पर एकत्रित होना तथा सामूहिक रूप से स्नान करना, तीर्थ यात्रा के महत्व को दर्शाता है। आखिर क्या रखा है तीर्थ यात्रा में? लोकोक्ति है कि अपना मन चंगा तो कटौटी में गंगा। बात सही भी है कि इस देश में संत रैदास जैसे संत भी हुए हैं जिनके लिए गंगा चलकर कटौटी में आ जाती है। लेकिन हर कोई तो रैदास नहीं हो सकता जो गंगा घर घर चल पड़ें। महाराज जी कहते हैं कि तीर्थों में एनर्जी का भंडार होता है। तीर्थ वहीं बनता है, जहां कभी लम्बी साधना हुई हो या कोई विशेष प्रतिभा रही हो। जब कोई विशेष प्रतिभा कहीं निवास करती है तो वहां के वातावरण में उसकी ऊर्जा विकरित होती रहती है। उस स्थान पर आने वाले लोग भी नैतिक उन्नयन की भावना लेकर एकत्रित होते हैं। उनके विचारों से उस स्थान पर ऊर्जा का बड़ा केन्द्र विकसित हो जाता है। जिसका लाभ सामान्य जन को भी जाने पर मिलता है। यद्यपि व्यक्ति समस्त शक्तियों को अपने में समेटे है लेकिन उन शक्तियों का उपयोग हर जन को नहीं आता है। व्यक्ति कहीं भी रहकर इन शक्तियों को विकसित कर सकता है लेकिन इसके लिए उसे योग्य गुरु के सानिध्य में रहकर अत्यधिक कड़ी साधना करनी पड़ती है या भक्ति का अतिरेक विकसित करना पड़ता है। जबकि तीर्थों पर यह उसे सहज ही मिल जाता है। तीर्थ क्षेत्र एनर्जी के भण्डार होते हैं जो हर समय विकसित होते रहते हैं।
Thursday, April 2, 2009
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