तीर्थयात्रा करने तो सभी जाते हैं, पर तीर्थयात्रियों के लिए ग्रन्थों में कुछ बातें कही गई हैं, जिन पर अमल करें तो तीर्थयात्रा अधिक सरल व सुफलदायिनी हो सकती है। इनमें से कुछ ध्यान देने योग्य बातें हैं-
१। अहंकार को त्याग कर जाएं, सभी रूप में नारायण के दर्शन करें। तीर्थों पर इसका अभ्यास प्रारम्भ करें फिर समस्त स्थानों पर ऐसा ही भाव बना रहे- "प्रेम से मिलना इस दुनियाँ में, सबसे तू इनसान रे। जाने कब किस रूप में तुझको, मिल जाए भगवान रे॥'
२। तीर्थ पर जाकर मन में गलत भाव ना लाएं। जूते चुराना, मोबाइल व पर्स मार लेना, ऐसे दुष्कर्म करना तो दूर इनका विचार भी मन में ना आए। अन्य क्षेत्रों में किए हुए दुष्कर्मों की मुक्ति तीर्थों पर जाकर पाई जा सकती है, पर तीर्थों पर किए हुए पापों की कहीं मुक्ति नहीं।
३। असुविधा में भी प्रसन्न रहें। प्रभु प्रेम की ख़ातिर सब कुछ हँस कर सह जाना ही सच्ची तीर्थ यात्रा है। धर्मशालाओं में, कतारों में, यात्रा के दौरान सभी को असुविधा व प्रतीक्षा का सामना करना पड़ता है। ऐसे में अधीर होकर, एक दूसरे को अपशब्द ना कहें। प्रभु के प्रेम के रंग में ऐसे डूबें कि असुविधा का एहसास ही न हो। हमारे प्रेम के चिराग की प्रभु ऐसे हवा के झोंकों से परीक्षा लेते हैं। सब्र से काम लें तो तीर्थयात्रा पर सभी को भरपूर आनन्द मिलेगा।
४. तीर्थों पर अहंकार रहित होकर दान करना जरूरी है। दान करने से पाप क्षीण होते हैं व धन शु( होता है। साधुओं व अन्य पात्रों को दान देना प्रभु को प्रिय है। इससे नट के रूप में नारायण की सेवा होती है।
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