आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Friday, April 24, 2009

तुम्हारे प्रेम का सागर, उमड़ता है हृदय में अब।


अंधेरा छोड़ कर मैंने, उजाला पा लिया देखो।

जो विष के घूँट चिर पीऐ, वही अमृत बना देखो॥

अंधेरा..........................

अंधेरा जब भी घिर आए, पुकारो नाम तुम उनका।

तुम्हें अपना बनाने को, जमीं पर आऐंगे देखो॥

अंधेरा.........................

तेरी रहमत से हे! भगवन्‌, तुम्हारी मैं पुजारिन हूँ।

शरण में आ गई देखो, प्रभु अजमा के तुम देखो॥

अंधेरा..........................

यहीं श्र(ा की गाड़ी में, किनारा पा लिया मैंने।

द्वेष सब मिट गए मन से, सहारा पा लिया मैंने॥

अंधेरा............................

तुम्हारे प्रेम का सागर, उमड़ता है हृदय में अब।

मनुजता की मलाई का, करम करके तो तुम देखो॥

अंधेरा..............................

लिखी है कृष्ण ने गीता, और तुलसी ने भी रामायण।

महाभारत लिखी जिसने, उसे पढ़ कर तो तुम देखो॥

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