आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Friday, May 1, 2009

भवसागर में गुरु ही नैया


भवसागर में गुरु ही नैया, भ्राता, पिता, मित्र और भैया॥

अन्धकार में दीप रुद्र हैं, जग के नाते सभी क्षुद्र हैं॥

मन का दीपक, प्रेम की बाती, भाव है तेल करें आराती॥

सो साधक हो दीन पुकारे, धाय रुद्र जी कण्ठ लगावें॥

ज्ञान, ध्यान, औ योग बतायें, भक्ति बिराग मर्म समझायें।

भागवत ज्ञान की गंग बहाऐं, हर-हर कर श्रावक नहाऐं॥

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