आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Saturday, April 4, 2009

तीर्थ यात्रा सामूहिक प्रार्थनाओं का वृहद स्वरूप है।

यहां एक उल्लेखनीय बिन्दु यह भी है कि समूह के रूप में एकत्रित होने से व्यक्ति बाह्‌य निरंकुशता से दूर होता है जिससे धीरे धीरे उसके अंतस की निरंकुशता भी क्षीण होती है। समूह में रहने, आने जाने से व्यक्ति दूसरे की अच्छी बातों को ग्रहण करता है तथा बुरी चीजों को त्यागता है। सामूहिक प्रार्थना से सामूहिक ऊर्जा का वृहद बर्तुल विकसित होता है जिससे सभी को लाभ होता है। प्रत्येक धर्म में एक विशेष अंतराल के बाद एक जगह एकत्रित होकर पूजा करने का विधान है। यह एकत्रीकरण स्थानीय होता है लेकिन इस एकत्रीकरण का बड़ा महत्व है। यहां पर की जाने वाली सामूहिक प्रार्थनाएं सर्वशक्तिमान द्वारा आवश्यक रूप से स्वीकार की जाती हैं। ऐसा दुनिया के हर धर्म एवं मनीषियों का मानना है। मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर एवं गुरुद्वारों में एकत्रित होना इसका लघुरूप है, तो तीर्थ यात्रा इन सामूहिक प्रार्थनाओं का वृहद स्वरूप है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि तीर्थ और तीर्थ यात्रा दोनों ही मानव जीवन के अभिन्न स्वरूप हैं। इस विषय पर विभिन्न धर्माचार्यों ने अपनी अपनी धर्म पुस्तकों के आधार पर तीर्थ एवं तीर्थ यात्रा से सम्बन्धित जानकारियां प्रस्तुत की हैं जिनको ठीक उसी रूप में जिस रूप में वे हमें प्राप्त हुई हैं, हमने यहां प्रकाशित किया है।

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