५। धर्मशालाओं को छोड़ते समय कमरे की सफाई कर दें। हमारी गन्दगी कोई अन्य साफ करे तो तीर्थ का फल क्षीण होता है।
६। मन्दिरों, घाटों आदि को गन्दा न करें, इतनी अधिक संख्या में लोग तीर्थों पर जाते हैं। स्थान-स्थान पर भोजन व प्रसाद के दोने, पत्तल फेंकना, पालीथिन फेंकना व बिना सोचे विचारे मन्दिरों में स्थान-स्थान पर प्रसाद फेंकना व दीवारों पर रोली-सिंदूर आदि के हाथ पोंछना, तीर्थ स्थानों की शोभा को नष्ट करता है, उन्हें दूषित करता है। ऐसे तीर्थयात्रियों को तीर्थयात्रा से अच्छा फल प्राप्त नहीं हो सकता। तीर्थों पर बड़ी सावधानी से रहें, कि हमसे कहीं गन्दगी ना हो।
७। तीर्थ पर जाएं तो अपनी किसी गलत आदत को छोड़ने का संकल्प करके आएं। तीर्थ पर प्रभु के प्रेम का इससे बड़ा सुफल नहीं हो सकता कि हम उसकी छाप अपने आचार-विचार पर डाल लें। प्रेम में बुरी आदत सहजता से छूट जाती है। अतः तीर्थों पर जो लोग कुछ पसंद की चीज न खाने का, नए कपड़े न खरीदने आदि का संकल्प लेते हैं, उसके स्थान पर अपनी बुरी लत या आदत जैसे- सिगरेट, शराब, गाली देना, चोरी करना, कपट व द्वेष करना, घमंड आदि को छोड़ने का संकल्प लें तो यह तीर्थयात्रा पूरे जीवन को ही स्वर्गमय बना सकती है।
८. कहते हैं कि माता-पिता की सेवा किए बिना तीर्थ जाने का फल नहीं मिलता। अतः घर पर माता-पिता तथा अन्य गुरूजनों की सेवा करें। उनका आशीर्वाद लेकर ही तीर्थयात्रा का पूर्ण लाभ मिल सकता है।
९. तीर्थस्थल पर भी साधुजनों की सेवा करें। भक्तजनों के सामान व जूते-चप्पल की सम्भालने की व्यवस्था करें। सेवा इस भाव से करें कि हर रूप में नारायण की सेवा हो रही है। सेवा करने से मन नीता होता है व अहंकार कम होता है। उपरोक्त बातों का ध्यान रख कर की गई तीर्थयात्रा सदैव फलित होती है। भक्ति पुष्ट होती है तथा ईश्वर से व सर्वजन से प्रेम बढ़ता है।
No comments:
Post a Comment