तीर्थयात्रा का उद्देश्य है- आध्यात्मिक विकास और आध्यात्मिक विकास मनुष्य को आनंद प्रदान करता है। दूसरी ओर, यदि हम किसी व्यक्ति की सहायता करते हैं अथवा उसकी इच्छापूर्ति में सहायक होते हैं, तो हमें अपार सुख एवं संतुष्टि मिलती है। दरअसल, हमारे मन में सद्वृत्तियों का विकास भी तीर्थयात्रा के समान ही है, जिसे हम यहां दी गई कहानी के माध्यम से समझ सकते हैं। लक्ष्मी के जीवन का आधार थी उसकी एकमात्र पुत्री माधवी। उसकी पिता की मृत्यु होने के कारण लक्ष्मी अपनी बेटी की परवरिश के लिए दिन-रात श्रम करती। एक दिन स्कूल से घर लौटते समय माधवी बारिश में भीग गई। भीगने के कारण उसे बुखार आ गया। बुखार के कारण उसकी तबियत दिन-ब-दिन बिगड़ती ही चली गई। चिंतातुर माँ मंदिर गई और ईश्वर से प्रार्थना की कि मेरी बेटी की तबियत को ठीक कर दो। मैं तीर्थयात्रा करूंगी। माधवी दो-चार रोज में भली-चंगी हो गई। उधर लक्ष्मी भी अपने वचनानुसार तीर्थयात्रा पर जाने की तैयारी में लग गई। तीर्थयात्रा पर जाने से एक दिन पहले रात में लक्ष्मी को अपने पड़ोस के घर से सिसकने की आवाज सुनाई दी। लक्ष्मी वहाँ गई, तो देखा कि उसकी पड़ोसन राधा रो रही है। लक्ष्मी ने उससे रोने का कारण पूछा, तो उसने बताया कि उसके पति कई दिनों से बीमार हैं। डॉक्टर ने कई टेस्ट और एक्सरे कराने को कहा है, पर घर में फूटी कौड़ी भी नहीं है। लक्ष्मी ने राधा की सारी बात सुन कर कहा कि बहन घबराओ नहीं, ईश्वर सब ठीक कर देंगे। वह घर गई और तीर्थयात्रा पर जाने के लिए जो पैसे रखे थे, लाकर राधा के हाथ पर रख दिए। राधा ने लक्ष्मी से कहा कि तुम तीर्थयात्रा पर न जाकर यह पैसे मुझे दे रही हो! लक्ष्मी ने कहा कि राधा तीर्थयात्रा तो फिर हो जाएगी! लेकिन इस समय उससे ज्यादा जरूरी है तुम्हारे पति का इलाज, इसलिए तुम अपने पति का इलाज कराओ। वास्तव में, किसी व्यक्ति की मदद या सेवा से बढ़ कर कोई तीर्थयात्रा नहीं होता और जिसने इस 'सत्य' को जान लिया, उसका मन ही सबसे बड़ा तीर्थ बन जाता है।
Wednesday, April 1, 2009
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