परमेश्वर सर्वशक्तिमान है और यह शाश्वत् सत्य है। भिन्न-भिन्न धर्मों में सत्य को कई रूपों में परिभाषित किया गया है। प्रत्येक धर्म एवं विश्वास अपने धर्मवलम्बियों एवं विश्वासियों से यही कामना करता है कि वह 'सत्य' पर चलते हुये अपने नैतिक कार्यों/जीवन को व्यतीत करें। वर्तमान संसार में शाश्वत् सत्य को अधर्म, बुराई अमानुविक कार्यों तथा सामाजिक कुरोतियों द्वारा पूर्णतः दबा दिया गया है तथा आसुरी शक्तियों को बढ़ावा मिला है। समझौतावादी संस्कृति ने 'अर्धसत्य' नामक शब्द का प्रादुर्भाव किया है जो निश्चय ही "शाश्वत् सत्य'' को समाप्त करने का प्रयास है परंतु मनुष्य सांसारिक मायाजाल में यह भूल जाता है कि "शाश्वत् सत्य'' का स्त्रोत स्वयं सर्वशक्तिमान परमेश्वर है और इसे कोई भी सांसारिक शक्ति मिटा/दबा नहीं सकती है। यह ठीक वैसा है जैसे हम सूर्य को अपनी मुठी में बंद नहीं कर सकते।
प्रश्न उठता है कि यह "शाश्वत् सत्य'' क्या है जिसका मनुष्य को सामाजिक, धार्मिक, आत्मिक अर्थात् पूर्ण छुटकारा प्रदान करता है। बाइबिल धर्मशास्त्र में सत्य के लिये मूल इबानी भाषा में मउमजी (येमेथ) शब्द का प्रयोग हुआ है जिसका मूल अर्थ स्थामित्व है ;निर्गमन १७ः१२ वहीं यूनानी भाषा में नव विधान में एलेथेसिया एवं पिस्तिस किया गया है जिसका अर्थ विश्वास योग्यता है। (रोमियो की पत्री ३: ३,७)।
प्रभु यीशु ने "शाश्वत् सत्य'' को अपने शब्दों में कहा कि "तुम सत्य को जानोगे और सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा (यूहन्ना ८ः३२)।'' यह उद्बोधन स्वयं सर्वशक्तिमान परमेश्वर के ज्ञान के इस संसार में प्रगट होने का पूर्ण प्रमाण है। यह एक गहन संबंध है सत्य और जीवन का। प्रभु यीशु ने कहा "मार्ग सत्य और जीवन मैं ही हूँ, बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता।'' इन शब्दों में "शाश्वत् सत्य'' जो परमेश्वर का ज्ञान है स्पष्ट रूप से प्रगट है। यूहन्ना रचित सुसमाचार के प्रथम अध्याय में 'सत्य' का विस्तृत वर्णन है। परमेश्वर का सत्य ज्ञान प्रभु यीशु मसीह के देहधारण में देखा जा सकता है। जहाँ यीशु के जन्म से मृत्यु, तत्पश्चात् तीसरे दिन जी उठना (पुनरूत्थान) देखने को मिलता है।
प्रभु यीशु ने स्वयं को सत्य कहा और यह सत्य इस संसार में पार्थिव रूप में मनुष्यों के बीच चला और फिरा तथा सत्य की गवाही दी जिसका स्पष्ट प्रमाण प्रभु यीशु के जीवन और कार्यों में परिलक्षित है। पापों की क्षमता, भूखों को खिलाना, मुर्दों को जलाना, बुराई एवं असत्य की घोर निंदा, प्रेम, सहनशीलता एवं शैतान पर विजय तथा सम्पूर्ण ब्रह्मांड पर नियंत्रण। यद्यपि संसार ने इस "शाश्वत् सत्य'' जिसमें छुटकारा निहित है, को अधर्म एवं असत्य से दबाना चाहा परंतु दबा नहीं सका। सत्य हमेशा जीवित रहता है और जीवित रहेगा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर सत्य के रूप में इस संसार में विद्यमान है, यदि न होता तो संसार कब का नष्अ हो चुका होता। प्रिय पाठको! संसार और असत्य, सत्य से कभी भी आगे नहीं हो सकता। जब तक सर्वशक्तिमान परमेश्वर है तब तक सत्य हमेशा रहेगा। अतः हमें हमेशा "शाश्वत् सत्य'' जो स्वयं परमेश्वर है, की खोज में रहना चाहिए तथा सत्य के ज्ञान से स्व-निरीक्षण कर संपूर्ण अंधकार को मिटा डालना चाहिए तभी हमारी देह, आत्मा, प्राण का कल्याण होगा और हमारा जीवन परमेश्वर को ग्रहण योग्य होगा। जिससे पृथ्वी भी सुरक्षित रहेगी तथा चारों ओर का वातावरण प्रदूषित होने से बच जायेगा।
प्रस्तुति : रेव्ह. संतोष पाण्डेय (धर्म पुरोहित)
चर्च ऑफ असेंसन, घंटाघर एवं क्राइस्ट चर्च, नकवी पार्क, अलीगढ़