आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Tuesday, September 23, 2008

जीवन तो धर्म का जीवन है

जीवन तो धर्म का जीवन है, कर्मों का बन्धन है।

धारा कब दूर नदी से, ईश्वर कब दूर खुदी से॥

संयम कब दूर हदी से, कब जीव है दूर गति से।

जीवन......................................

जीवन के सफर में जानें कितने मकाम आते हैं।

कितने आँसू दे जाते, कितने बहार लाते हैं॥

प्यारे प्यारे दुःख से, हँसते रोते मुखड़ों से।

दिल के हंसीन टुकड़ों से खामोश खिले अधरों से॥

जीवन....................................

दामन में कभी काँटों से जीवन को सआना होगा।

पतझड़ में बसा दिल अपना कलियाँ को भुलाना होगा॥

लहरों को बनाकर कस्ती, हर क्षण तेरी याद की मस्ती।

भूले न 'रुद्र' तेरी भक्ति, तेरे चरणों सी हस्ती॥

जीवन.........................

1 comment:

योगेन्द्र मौदगिल said...

वाह वाह..
जीवन मूल्यों से जुड़ी इस कविता हेतु बधाई स्वीकारें.