भटके हम भगवान से नहीं, अपने फ़र्ज़ से भटक गए हैं। हम भगवान से दूर नहीं हुए हैं, अपने-अपने फ़र्ज़ को भूल गए हैं। इसलिए उससे दूर हो गए ऐसा अनुभव करते हैं। बस फ़र्ज़ को पकड़ लें, वो तो हैं ही हमारे पास में। अपने कर्म को करो, भगवान दूर नहीं हैं। ब्रह्मा ने तप किया। भगवान ने उनके हृदय में दर्शन देकर ब्रह्मा को आदेश दिया कि मेरा ध्यान करते हुए सृष्टि की रचना करो।
ब्रह्मा ने अविद्यादि पाँच वृत्तियों को उत्पन्न किया- सनकादि रिषि उत्पन्न किए, जो सन्यासी हो गए। क्रोध उनके भौंहों के बीच से उत्पन्न हुआ, लाल और नीले रंग के रूप में जिससे रुद्र भगवान प्रकट हुए। रुद्र बोलते हैं- कम्पन को, ध्वनि को। जानते हो दुनियाँ क्या है? एक कम्पन है। जिन्दगी क्या है? कम्पन है। कम्पन है तो जीवन है, नहीं तो जीवन खत्म हो गया। कोई भी चीज खत्म नहीं होती। कम्पन से उत्पन्न होती है, कम्पन से ही समाप्त हो जाती है। कम्पन हर समय, हर जगह है। कम्पन ही धरती में, गगन में, वायु में, खाली स्थान में भी है। इसलिए खाली जगह छोड़ना धर्म है। जगह को भरना धर्म नहीं है। अपने दिमाग को जितना खाली रखोगे, उतने ही धर्मात्मा होते जाओगे। यही रुद्र भगवान का कहना है। जगह को खाली नहीं छोड़ोगे तो रोओगे, पछताओगे। झगड़ा किसका? जगह को भरने, पकड़ने का ही तो झगड़ा है। कोई कुर्सी चाहता है, कोई जमीन, कोई मकान को जकड़ना चाहता है, पकड़ना चाहता है। इसी से सारी क्लेष है।
साधु कौन है? जिसने किसी को पकड़ा हुआ - जकड़ा हुआ नहीं है। जो किसी से जकड़ा हुआ नहीं है, वही साधु है और नहीं तो स्वादु है। तीन चीजों के लिए रोता है आदमी- एक नाम के लिए, एक जमीन के लिए, एक ब्याह के लिए। तीन ही तरह के रोने हैं। रुद्र भगवान भी रोए, बोले मुझे नाम दो, जमीन दो और मेरा ब्याह करो। तो उन्हें ग्यारह नाम दिए गए, ग्यारह स्थान दिये और ग्यारह शक्तियाँ दी गईं। जमीन के लिए जो रो रहा है वह साधु नहीं है, मान के लिए या स्त्री के लिए रो रहा है वो भी साधु नहीं। जिसने नाम, जमीन और स्त्री तीन चीजों की पकड़ छोड़ दी, वह सन्त हो गया। ब्रह्मा जी ने देखा कि इनकी सृष्टि तो आपस में झगड़ा कर रही है, तो बोले "बेटा! जिस घर में झगड़ा हो, वह घर छोड़ देना चाहिए।'' तो शमशान में बैठ गए और आत्म चिन्तन करने लगे। फिर ब्रह्मा जी ने मानसी सृष्टि की। जिसमें वाणी की देवी सरस्वती उत्पन्न हुईं। अपनी मानसी पुत्री पर ब्रह्मा जी मुग्ध हो गए, मोहित हो गए। सरस-रसीली.... सरस्वती पर। ब्रह्मा कहते हैं-बुद्धि को।
बुद्धि अगर रसीली बातों में घूमी हुई है, तो समझो बर्बाद है। जिन बातों से रस टपकता है, उनमें बुद्धि रत हो जाए तो बुद्धि का नाश होता है। जिन गीतों में से रस टपकता ह,ै उनसे बुद्धि का नाश होता है और आज कल जो आदमी फोन लगाकर या माइक लगा कर या कैसे भी रसीले, स्वाद-स्वाद के गीत सुनते हैं, उनमें बुद्धि मिलेगी ही नहीं। बुद्धि वो जो उलझे हुए विषय को सुलझाए और आजकल का आदमी.... जिसमें बुद्धि से काम करना पड़ता है उसे सुनना नहीं चाहता है और आज कल के गीत भी ऐसे ही हैं जिनमें दिमाग न लगाना पड़े जो सीधे-सीधे यूँ ही पहुँच जाएं। जिसमें दिमाग़ लगाना पड़े, जिनमें ज्ञान की बात मिलती हो वो गीत ही खत्म हो गए हैं। सब गीत हैं, सीधे-सीधे, सपाट-सपाट, गँवारपने के। इसलिए आदमी में बुद्धि नहीं रही। रसीले, स्वादभरे गीत सुन रहा है। और उसे उनमें स्वाद आ रहा है तो समझना कि यह लड़का, यह आदमी बर्बाद हो गया।
यदि तुम चाहते हो कि हम समझदार बनें, ज्ञानी बनें तो स्वाद के गीत और बात छोड़ देना जिनमें दिमाग़ लगाना पड़े, वही बात सीखना, वही गीत सुनना। ब्रह्मा का जीवन बर्बाद हो गया। बुद्धि खत्म हो गई। फिर रिषियों के कहने पर ब्रह्माजी ने शरीर छोड़ दिया और दूसरा शरीर धारण किया। अर्थात दूसरी बात, दूसरा तरीका पकड़ा। जिसमें दिमाग़ लगाना पड़ता है वही बात करो, वही बात सुनो और जिसमें दिमाग़ नहीं लगाना पड़ता वो बात छोड़ दो, वो गति छोड़ दो।
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