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Sunday, September 14, 2008

भागवत कथा अंक 14

जैसे पानी से लहर पैदा होती है, पर अलग दिखती है। ऐसे ही जगत परमात्मा से उत्पन्न होकर दिखता है।

मैं' कौन हूँ, इसको जानने के लिए, पहले जानो कि मुझे क्या करना है?

अपने-अपने कर्त्तव्य को पकड़ लें तो भगवान तो दूर हैं ही नहीं।

जाकी रही भावना जैसी.......... प्रभु मूरती देखी तिन तैसी।

......... जब भी बताने वालों ने बताया कि ये परमात्मा जगत रूप में कैसे दिखा? जैसे चिंगारी और आग क्या अलग-अलग हैं? नहीं! फिर भी आग चिंगारी के रूप में दिखती है। जैसे-जल और लहर दो हैं क्या? नहीं हैं न! फिर लहर क्यूँ दिखती हैं। ऐसे ही, "है परमात्मा ही परमात्मा'' फिर भी जगत दीखता है। जैसे पानी से लहर पैदा होती है पर अलग दिखती है। जैसे आग से चिंगारी पैदा होती है फिर भी अलग दिखती है। ऐसे ही जगत परमात्मा से उत्पन्न होकर अलग दिखता है लेकिन कुछ अलग नहीं हुआ। पानी ही पानी है, आग ही आग है, कुछ अलग नहीं है। ऐसे ही परमात्मा ही परमात्मा है, जगत अलग नहीं है।............. विस्त्रत के लिए देखें.......http://bhagawat-katha.blogspot.com/

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