जब कभी भारतीय विज्ञान की चर्चा होती है तो वैज्ञानिक दृष्टि से सामान्य व्यक्तियों द्वारा जो एक विषय अनिवार्य रुप से चर्चा में लाया जाता है, वह है हमारे पूर्वजों द्वारा स्वर्णिम युग में वैज्ञानिक प्रगति। वैज्ञानिक प्रगति के स्वर्णिम इतिहास में जो उदाहरण दिये जाते हैं उनमें महाभारत, रामायण तथा अनेक पुराणों का उल्लेख किया जाता है जिसमें गाइडेड मिसाइल, विच्च्व को समाप्त करने की क्षमता रखने वाले हथियार, लेजर जैसी किरणें, जीवन दायिनी दवाईयाँ, ब्लैक होल तथा प्रकृति के कई अन्य रहस्यों का उद्घाटन किया है जिससे आज के वैज्ञानिक ललित लेखन भी शर्मा जायें। यदि उस समय की इतनी वैज्ञानिक चर्चा है तो तर्क दिया जाता है कि उस समय उच्च तकनीकी का वातावरण अवच्च्य रहा होगा जो बिना उच्च स्तरीय विज्ञान के संभव नहीं है। हमारे प्राचीन पूर्वज अवच्च्य ही वैज्ञानिक क्षेत्र में अग्रणीय रहे होंगे। हमें मिथ (पौराणिक आख्यानों से) चाहे वे कितने ही उत्तेजक हों, प्रेरणादायक लगते हैं। प्राचीन ग्रीक में भी एलियाद और ओडसी जैसे महाग्रन्थ हैं लेकिन उनमें यूक्लिड, पाइथागोरस तथा आर्कमिडिज का लेखन भी है जो वैज्ञानिक दृष्टि से ज्यादा रुचिकर तथा थीसियस अचिली के साहसिक कार्य से ज्यादा सांसारिक भी है।यूक्लिड एलिमेन्ट में बौद्धिक अभ्यास की तरह कुछ महत्वपूर्ण अवधारणाओं तथा प्रमेयों की चर्चा है जो कि तर्क पर आधारित है। पाइथागोरस प्रमेय कहती है कि समकोण त्रिभुज में कर्ण का वर्ग त्रिभुज की शेष दो भुजाओं के वर्ग के योगफल के बराबर होता है। आर्कमिडिज का काम प्रकृति के रहस्यों के उद्घाटन के साथ जीवन के व्यवहारिक पक्ष में मदद करता है तथा इसे और सुधारने का मार्ग प्रच्चस्त करता है। इसी तरह हम चर्चा करेंगे, अपने प्राचीन भारतीयों के विज्ञान एवं तकनीकी क्षेत्र में योगदान की जो प्रमाणों पर आधारित है।http://www.rudragiriji.net
प्रस्तुति : डा. श्रीराम वर्मा
3 comments:
बहुत ही अच्छा एवं सराहनीय प्रयास। शुभकामनाएं।
kya vaakai pythogoras se pahle is pramey ka bharatiyon ko gyan tha?
प्राचीन भारतीय वास्तुशिल्प को देखने मात्र से पता चल जाता है कि हम कुछ क्षेत्रों में कितने उन्नत थे!!
-- शास्त्री जे सी फिलिप
-- हिन्दी चिट्ठाकारी के विकास के लिये जरूरी है कि हम सब अपनी टिप्पणियों से एक दूसरे को प्रोत्साहित करें
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