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Sunday, June 21, 2009

पानी के संग्रहण की समस्या ही सबसे प्रमुख साबित होने वाली है।


विशेषज्ञों का मानना है कि अभी संसार में मानव जितना पानी इस्तेमाल कर रहा है अगले दो दशकों में यह और अधिक बढ़ेगा। यह इस्तेमाल वर्तमान के मुकाबले ४० प्रतिशत अधिक तक जा सकता है। विषय विशेषज्ञ और वैज्ञानिक इन बातों से अत्याधिक चिंतित हैं और मानते हैं कि यह शताब्दी मानव सभ्यता के लिए पिछली शताब्दियों जितनी आसान साबित होने वाली नहीं है। वैज्ञानिक मीठे पानी के सबसे प्रमुख श्रोत बारिश के पानी को संचित करने पर जोर दे रहे हैं। जिन जगहों से नदियाँ बह रही हैं, वैज्ञानिक उन जगहों के लोगों से यह अपेक्षा कर रहे हैं कि वो इस अथाह जल राशि को अपनी आँखों के सामने से यूँ ही बह नहीं जाने दें और उसे संचित करने के यत्न करें। वैज्ञानिकों के अनुसार इस शताब्दी में ग्लोबल वार्मिंग के बाद पानी के संग्रहण की समस्या ही सबसे प्रमुख साबित होने वाली है। खेती कहाँ से होगी : मीठे पानी का सबसे अधिक उपयोग खेती में होता है। मानव द्वारा उपयोग में लिए जाने वाले पानी का ७० प्रतिशत सिर्फ खेती के लिए होता है। वर्ल्ड वाटर काउंसिल के अनुसार २०२० तक खेती के लिए उपयोग होने वाली पानी में १७ प्रतिशत का इजाफा होगा। अगर यह नहीं हुआ तो विश्व का पेट भरने में मुश्किल आ जाएगी। इस बात को सोचकर ही रूह काँप जाती है कि अगर खेती के लिए पर्याप्त पानी नहीं मिला तो विश्व की एक बड़ी आबादी को रोजाना भूखे पेट सोना पड़ेगा। और इनमें से भी कई प्यासे रह जाएँगे। अफ्रीका में तो प्रतिदिन ५० हजार बच्चे पाँच साल का होने से पूर्व ही काल के गाल में समा जाते हैं और इसकी वजह सिर्फ भूख होती है। एशिया पर सबसे अधिक संकट : दुनिया की ६० प्रतिशत आबादी को अपने में समाहित करने वाला एशिया महाद्वीप जल संकट का सबसे अधिक सामना कर रहा है। इस महाद्वीप में भी दक्षिण एशिया की हालत सबसे अधिक खराब है, जहाँ की ९० प्रतिशत आबादी जल संकट का सामना कर रही है। लेकिन सिर्फ ऐसा नहीं है कि विकसित देश और योरप तथा अमेरिका जैसे महाद्वीप जल संकट से अछूते हैं। यहाँ भी हालात दिन पर दिन बिगड़ते जा रहे हैं। ग्लोबल एनवायरमेंट आउटलुक (जीयो-३) की रिपोर्ट के अनुसार २०३२ तक संसार की आधी से अधिक आबादी भीषण जल संकट की चपेट में आ जाएगी। भू-जल का उपयोग सौम्य चोरी : वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के गर्भ में सुरक्षित भू-जल को रिर्जव वॉटर कहा है। लेकिन भारत में जहाँ-तहाँ बोरिंग करवाकर इसका उपयोग शुरू कर लिया जाता है। ऐसा विश्व के कई अन्य देशों में भी किया जाता है। वैज्ञानिक इस प्रक्रिया को प्रकृति के बैंक से की जा रही चोरी की संज्ञा देते हैं क्योंकि इस अमूल्य पानी के उपयोग के बदले कुछ भी चुकाया नहीं जाता। वहीं भारत के जल प्रबंधन विशेषज्ञ अनुपम मिश्र इसे पानी की सौम्य चोरी की संज्ञा देते हैं।

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