ग्लोबल वार्मिंग, पिघलते ग्लेशियर, नीचे जाता जल स्तर और इंसान द्वारा धड़ाधड़ किया जा रहा जल दोहन भयावह भविष्य की ओर इशारा कर रहा है। समूची मानव जाति पर पानी की कमी के बादल मंडराने लगे हैं। दुनिया भर के विद्वान और वैज्ञानिक चीख चीख कर कह रहे हैं कि अगर इंसान ने इस दिशा में ध्यान न दिया तो पानी के लिए दुनिया में जंग हो सकती है। आज जिस बात को वैज्ञानिक कह रहे हैं उसे हमारे मनीषी हजारों हजार साल पहले से जानते थे। केवल वैदिक ही नहीं समस्त सभ्यताओं और धर्मों ने पानी के महत्व को स्वीकार कर इसे स्तुतियोज्ञ माना था। वैदिक संहिताओं में पंचमहाभूतों का वर्णन किया गया है तथा उनके महत्व को बताया गया है। अवश्य ही यह पर्यावरण संतुलन में अत्यंत सहायक है तथा एक दूसरे पर निर्भर है। प्रकृति में पांच आकारो में उपस्थित है, आकाश, वायु, अग्नि ;तेजद्ध, जल ;आपःद्ध तथा पृथ्वी है। दर्शनशास्त्र में इनका विशेष महत्व है। तत्कालीन वैदिक संस्कृति तथा संदर्भ में उपरोक्त तत्वों का क्या महत्व था हम वैदिक संहिताओं में स्पष्ट रूप से पाते हैं। वेदों के कई सूक्त इनकी प्रशंसा में रचे गये हैं जिनका वर्तमान मानवीय जीवन से गहरा संबंध है। प्राचीन काल में ही नहीं रहीम और कबीर ने भी पानी की बहुमूल्यता को समझा तभी तो कहा था कि रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून। लेकिन आज हम इसे बेकार कर रहे हैं। इसे संरक्षित करने की आवश्यकता है। इस विषय पर विस्त्रत आलेख इस श्रंखला में प्रकाशित हैं।
Friday, June 5, 2009
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