जलः- संस्कृत शब्द आपः है। वामन शिवराम आप्टे का संस्कृत हिन्दी कोश में इसका गुण बताया गया है। स्फूर्तिहीन ठंडा, शीतल तथा जड़। हिन्दु धर्मकोश में इसकी उत्पत्ति इस प्रकार बतायी गयी है ÷÷पृथ्वी के परमाणुकरण स्वरूप से विराट पुरूष ने स्थूल पृथ्वी उत्पन्न की तथा जल को भी उसी कारण से उत्पन्न किया।'' इसी प्रकार पुरूष सूक्त के सत्तरहवें मंत्र में कहा गया है कि परमेश्वर ने अग्नि के परमाणुओं के साथ जल के परामाणुओं को मिलाकर जल की रचना की। जल वायु के बाद पृथ्वी सम्पूर्ण रूप से वितरित तत्व है। तथा ७५ः भाग पृथ्वी को घेरे हुये हैं। न केवल भारत वरन् विश्व के अनेक प्राचीन देशों में तथा प्राचीन संस्कृति एवं सभ्यताओं में जल का विस्तृत विवरण है। तथा इसे सर्वोच्च महत्ता दी गयी है जल न केवल मनुष्य के जीवन का महत्वपूर्ण भाग है वरन् उसके धार्मिक जीवन को भी प्रभावित करता है। प्रजनन शक्ति से भरपूर होता है तथा रोगों को नाश करने में भी यह अत्यंत लाभदायक है। बशर्ते वह शु( जल होना चाहिए। )ग्वेद का एक सूक्त जल की महत्वता को इस प्रकार बताता है। अत्स्वन्तरमृतंमप्सु भेंषजमपामुव प्रशंस्तये। देवा् भक्त वाजिनः॥हे विद्वान पुरूषो, जलों के भीतर जो भार डालने वाले रोगों के निवारण करने वाला अमृत रूप रस है तथा जल में ही सब रोगों को दूर करने वाला बल भी है, उसको जानकर जल की क्षमता का ज्ञान प्राप्त कर बलवान हो जाओ। रिग्वैदिक काल में जल को आपः देवता कहा गया है तथा ऐसा माना जाता है कि यह हिंद ईरानी देवता है। जल का संबंध इंद्र देवता से भी है तथा रिग्वेद के लगभग एक चौथाई मंत्रों में यह संबंध प्रगट है। इंद्र को ÷÷मनुष्य रूप से यह वर्षा का देवता है जो कि अजावृष्टि अथवा अंधकार रूपी दैत्य से यु( करता तथा अवरु( जल को विनिर्मुक्त बना देता है। आपः जो जल का देवता है जिनसे यह प्रार्थना की गयी है कि वह सभी प्रकार के जलों से हमारी रक्षा करें समुद्र का जल नदी का जल, कूप तथा तालाब के जल से भी हमारी रक्षा करें। उपरोक्त मंत्र से यह प्रतीत होता है कि रिग्वेद काल में भी जल को तालाबों तथा कूपों में एकत्रित किया जाता था।जल का सेवनः- रिग्वेद के एक मंत्र में जल के देवता आपः को इस प्रकार बताया गया है ÷÷आपः देवता औषधियों से युक्त है, इसीलिये पुरोहितों को इनकी स्तुती हेतु तत्पर रहना चाहिये।'' एक मंत्र में इस प्रकार बताया गया है कि ÷÷इनकी स्तुती मात्र से मानव रोग तथा पाप से मुक्त हो जाता है।'' तत्कालीन रिषियों तथा मुनियों ने तथा आर्यों ने जल की महत्वता तथा उसके गुणों को पहचाना था अतः उपरोक्त मंत्रों की रचना उन्होंने की तथा यह बताया कि "हे जल, इस जीवन में तुम्हें हम अनुकूलता से सेवन करते हैं, तुम्हारे रस स्पर्श तथा तुम्हारे स्वादगुण से हम सम्पन्न होते हैं।.......... हमें तेजस्वी कीजिये।'' जल का संबंध न केवल अग्नि से है वरन् कई पौधों से भी इसका संबंध है। जानवरों विशेषतः सर्प सबसे महत्वपूर्ण है जिससे इसका संबंध है उनमें चीटियां तथा मेंढक भी सम्मिलित हैं। इन संबंधों से हम यह जानते हैं कि पर्यावरण की सुरक्षा यह प्राणी किस प्रकार से करते हैं। जल की तुलना मधु से की गयी है "तथा कहा है कि जल की लहरों में मधु के समान धनाड्यता है।''
Sunday, June 14, 2009
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