प्रस्तुति : सचिन शर्मा
दुनिया में पानी की मात्रा सीमित है। हालाँकि हमें हमेशा से यही सुनने को मिलता रहा है कि पानी असीमित है। संसार में पानी की बहुतायत है और इसलिए मानव जाति ने पानी का हमेशा दुरुपयोग ही किया। लेकिन यह बात गलत साबित हो गई और २०वीं शताब्दी के अंत तक हमें पता चल गया कि पीने योग्य मीठा पानी बहुत ही सीमित है और इसी सीमित पानी से संसार में रहने वाली सभी प्रजातियों (मानव समेत) को गुजारा करना होगा। वैज्ञानिकों के अनुसार अगले दो दशकों में पानी की कमी के कारण हमें जो कुछ भुगतना पड़ सकता है, उसकी फिलहाल कल्पना भी नहीं की जा सकती। पृथ्वी का नक्शा देखने पर हमें लगता है कि वह सब तरफ से नीली ही नीली है। संसार का ७५ प्रतिशत भाग पानी है। यहाँ सागर हैं। महासागर हैं। बड़ी-बड़ी खाड़ियाँ हैं, लेकिन यह हमारे किसी काम के नहीं हैं। यह सब नमकीन है। हम इन्हें पीने के उपयोग में नहीं ले सकते, इनसे खेती नहीं कर सकते। हाँ, यह अलग बात है कि ये पानी के अथाह भंडार विश्व के वायुमंडल, तापमान और मौसम को नियंत्रित करने में महती भूमिका निभाते हैं लेकिन हमारे जिंदा रहने के लिए जरूरी पीने का पानी इन श्राोतों से नहीं मिल सकता। बात सिर्फ पीने योग्य पानी की करें तो विश्व के कुल भू-भाग में हिलोरे ले रहा ७५ प्रतिशत भाग यानी पानी का सिर्फ २.५ प्रतिशत ही मीठा पानी है। इस ढाई प्रतिशत मीठे पानी का भी ७५ प्रतिशत भाग ग्लेशियर और आइसकैप्स के रूप में संरक्षित है। ये ग्लेशियर और आइसकैप्स दुनिया में दुर्गम जगहों पर स्थित हैं और हर किसी की वहाँ तक पहुँच संभव नहीं। इतना ही नहीं ग्लोबल वार्मिंग के चलते इन बर्फीले पानी के श्रोतों पर भी नजर लग रही है और ये पिघल रहे हैं। इनके पिघलने से मीठा पानी कई जगह नमकीन समुद्री पानी से मिलकर बेकार हो जाता है। आर्कटिक और अंटार्कटिक से पिघलकर बह रहा मीठा पानी इसका उदाहरण है। सिर्फ उस पानी की बात करें जो मनुष्य के लिए उपलब्ध है तो वो धरती के कुल पानी का मात्र ०.०८ प्रतिशत ही है। मीठे पानी का सिर्फ ०.३ प्रतिशत ही नदियों और तालाबों जैसे श्रोतों में मिलता है। बाकी जमीन के अंदर भू-जल के रूप में संरक्षित है। लेकिन अब भूजल पर भी लोग डाका डालने लगे हैं और इसका बेतरतीब उपयोग सब जगह हो रहा है।
No comments:
Post a Comment