आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Monday, June 15, 2009

जल के विषय में प्रचलित मिथक

जल के विषय में कइZ मिथक प्रचलित हैं। यद्यपि यह मिथक है जिन्हें हम प्रभाविक नहीं मान सकते हैं परन्तु इनसे हमें यह अवश्य पता चलता है कि जल कितना पवित्र तथा बहुमूल्य है।वैदिक मिथ: एक चमत्कारिक घटना पायी जाती है, जिसमें अधिकार ब्रम्हाण्डीय देवता जल में विचरण करते हैं, वरूण देवता जो प्रकृति पर आधिकार रखते हैं, उनका पानी से बड़ा गहरा संबंध बताया गया है। मित्र के साथ मिलकर वह वषाZ का कारण होते हैं तथा इन्द्र के साथ मिलकर वह यह घोषणा करते हैं कि ‘‘वह मैं हूँ जो सम्पूणZ जल में फैला हुआ ;दौड़ताद्ध हूँ।’’ वरूण को पानी का अभिन्न भाग बताया गया है। जिसे इस प्रकार वणिZत किया गया है ‘‘वह ;वरूणद्ध जल में विश्राम करता है तथा उसका स्वणZमय घर उस पर बना हुआ है दो समुद्र उसकी अंतड़ियां हैं पानी की प्रत्येक बूंद में वह छुपा हुआ है।’’ यद्यपि यह मिथ है परन्तु यह स्पष्ट है कि पानी की बूंद में यदि देवता हैं तो अवश्य ही जल को अपवित्र नहीं करना है।साइबेरियन मिथ:- इस प्रकार पाया जाता है कि प्रारम्भ में जल सब ओर था, इसी समय डोह जो प्रथम शामनी और समुद्र के जल में पक्षयिों के साथ उड़ रहा था तथा कहीं भी विश्राम न पा सका तब उसने रक्तमय छाती युक्त दुष्ट से कहा कि समुद्र में गोता लगा कर कुछ पृथ्वी लाओ। तीसरे प्रयास में वह गोता लेकर अपने साथ कीचड़ लाया जिसे डोह ने बफाZच्छादित किया तथा यह जल बन गया। इसी प्रकार आस्टेªलियाइZ परंपरा में भी पृथ्वी को जलमग्न बताया गया है तथा कइZ आत्माओं के विचरण करना भी बताया गया है। उपरोक्त तथ्यों के अध्ययन से हम यह कह सकते हैं कि जल का स्थान सृष्टि में है तथा शुद्ध एवं पवित्र जल मनुष्य के जीवन हेतु अत्यंत महत्वपूणZ है वेद संहिता में जल को अत्यंत सम्मान दिया गया है तथा सम्पूणZ सृष्टि से इनका संबंध बताया गया है।

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