आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Saturday, July 12, 2008

कविता


क्यूं कहते हो मेरे साथ कुछ भी बेहतर नही होता

सच ये है के जैसा चाहो वैसा नही होता
कोई सह लेता है कोई कह लेता है क्यूँकी

ग़म कभी ज़िंदगी से बढ़ कर नही होता
आज अपनो ने ही सिखा दिया हमेयहाँ

ठोकर देने वाला हर पत्थर नही होता
क्यूं ज़िंदगी की मुश्क़िलो से हारे बैठे हो

इसके बिना कोई मंज़िल,

कोई सफ़र नही होता
कोई तेरे साथ नही है तो भी ग़म ना कर

ख़ुद से बढ़ कर कोई दुनिया में हमसफ़र नही होता!!!

प्रस्तुतकर्ता :सचिन

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3 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बढिया रचना है।

Anonymous said...

yatharth darshan hai

Anonymous said...

Bahut achchha hai, kuchh aur rachnaen daliye blog par.
aur lage haath yah bhi bata dijiye ki magazine ka subsription kaise mil sakta hai?
Kya online subscription ki suvidha hai? Thanx