mahahraj ji
... शौनक, शमीक की आँखे खुलीं तो उन्होंने उस बालक को बहुत डाँटा पर अब कुछ हो नहीं सकता था। फिर उन्होंने अपने शिष्यों को परीक्षित के पास भेजा। उन्होंने अपने शिष्यों को परीक्षित के पास भेजते समय श्राप के विषय में सचेत किया। परीक्षित महाराज मुकुट उतारकर चिन्तन करने लगे कि ये ऋषिपुत्र मेरे लिए श्राप नहीं हैं, यह चेतावनी है, वरदान है। आदमी दूसरे को देखकर के बड़ा बनता है नशे में। फिर बाद में जब नशा उतरता है, तो सोचता है अकेले में, कि क्या भला है, और क्या बुरा है? ................http://www.bhagawat-katha.blogspot.com/
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