आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Saturday, July 26, 2008

संकल्प का फल: कहानी

गौतमगिरिजि महाराज

एक समय की बात है एक बनिया कथा श्रवण करने जाता था। कथाकार महाराज ने उससे कहा- तुम कथा तो सुनते हो सो कुछ अच्छा सा संकल्प करो। सत्य बोलने का संकल्प करो। बनिया बोला वह तो व्यापारी है, सत्य ही बोलेगा तो सारा कारोबार चौपट हो जाएगा। इस पर महाराज ने कहा कि किसी की निन्दा न करने और न सुनने का संकल्प कर लो। बनिया कहने लगा- महाराज, जब तक रात को दो तीन घंटे बातों में न गुजारूँ, मुझे नींद ही नहीं आती है। इसलिए मैं यह संकल्प भी नहीं कर सकता। महाराज जी ने कहा कि चलो तुम जो चाहो संकल्प कर सकते हो, लेकिन उसका पालन नियम पूर्वक करना। बनिया बोला महाराज मैं संकल्प लेता हूँ कि प्रतिदिन अपने घर के सामने रहने वाले कुम्हार का मुँह देखकर ही अपनी दैनिक क्रियाएं प्रारम्भ किया करूँगा। वह रोजाना सुबह जगता तथा कुम्हार का मुँह देख लेता। एक दिन बनिए के जगने से पहले ही कुम्हार मिट्टी लेने गाँव से बाहर चला गया। बनिया जागा तो उसे कुम्हार का मुँह दिखाई नहीं दिया। बनिया अपने संकल्प को पूरा करने के लिए कुम्हार को ढूँढ़ने चल दिया। उधर कुम्हार जब मिट्टी खोद रहा था तो उसे वहाँ गड्ढे में एक सोने से भरा मटका मिला। वह उसे निकाल ही रहा था कि उसी समय बनिया भी कुम्हार का मुँह देखने की नीयत से वहाँ पर पहुँच गया, और मुँह देखकर बोला- चलो मैंने देख लिया। कुम्हार ने समझा कि बनिए ने सोने से भरा मटका देख लिया है। यदि वह राजा से कह देगा तो पूरा का पूरा सोना जब्त हो जाएगा। सो वह बनिए से बोला,- तूने देख तो लिया है पर किसी से कहना मत। मैं तुम्हें आधा भाग देता हूँ। इस प्रकार बनिए को सोना मिल गया।

अब बनिया सोचने लगा कि मैंने इस कुम्हार के मुख दर्शन का संकल्प लिया तो लक्ष्मी जी का आगाज हो गया, अगर मैंने स्वयं प्रभु के दर्शन का संकल्प लिया होता तो कितना अच्छा होता। ऐसे छुल्लक और मजाकिया संकल्प से इतना लाभ हो सकता है तो शुभ संकल्प से कितना लाभ होता। मनुष्य को दो संकल्प तो अवश्य ही करने चाहिए- एक, पाप कर्म न करने का और दूसरा सत्कर्म करने का.

1 comment:

Ramesh Ramnani said...
This comment has been removed by a blog administrator.