आधयात्मिक मूल्यों के लिए समर्पित सामाजिक सरोकारों की साहित्यिक पत्रिका.

Thursday, July 10, 2008

गुरु माली ,हम फूल हैं

मानव को सम्पूर्ण अस्तित्व में आने के लिए नौ मास गर्भ में रहने की आवश्यकता होती है, और इस लम्बे समय को एक मां ही सहन करती है। फिर जब बच्चा संसार में आ जाता है तो रात दिन उसके पालन पोषण में अपने आपको भुला देती है। न रात को चैन से सोती है और न दिन को आराम करती है और अपनी हर पीड़ा को भुला देती है। इसीलिए कहा गया है कि मां के चरणों में स्वर्ग है। मां जहां बच्चे का पालन पोषण करती है, वहीं पिता उसकी शिक्षा, खाना, कपड़ा और दूसरी आबश्यकताओं को पूरा करने की चिन्ता में रात दिन मेहनत करता है। दोनों मिलकर अपने बच्चों की परवरिश के लिए अपना जीवन समर्पित कर देते हैं। लेकिन उच्च शिक्षा और संस्कार एक गुरु ही दे सकता है। इंसान के स्वभाव और उसके चरित्र को सजाने संवारने में गुरु अपने कर्तव्य का पालन करता है। इसीलिए गुरु को माता पिता से उच्च श्रेणी में रखा गया है। कहावत है कि "सन्तान माता पिता पैदा करते है, परन्तु उस संतान को इंसान, गुरु बनाता है। जिस तरह बीज, मिट्टी, पानी, गर्मी और हवा माता पिता की तरह पौधे को जन्म देते हैं और एक अनुभवी माली की देख रेख में पौधे का पालन पोषण होता है और वह बड़ा होकर फल देता है या सुन्दर सुन्दर फूल देकर अपने आस पास के वातावरण को और अधिक रंगीन बना देता है। अगर माली अनुभवी और परिश्रमी होता है तो बाग हरा भरा और रंग बिरंगे फूलों से सदैव मालामाल रहता है। इसी तरह किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व को निखारने में गुरु की ही सारी मेहनत होती है। शिष्य और गुरु का सम्बन्ध बाग और माली का है। जिस तरह माली तरह तरह के पेड़, पौधे, फूलों से बाग को सुन्दर से सुन्दर बनाने की जिज्ञासा में रहता है वैसे ही गुरु अपने शिष्य को हर तरह से एक सुन्दर व्यक्ति बनाने का प्रयत्न करता है।

इसका उदाहरण फोरबंस के किन्डरगार्टन की तरह है जहां बच्चों को प्रारम्भ से ही हर तरह की शिक्षा और संस्कार देकर एक अच्छा विद्यार्थी बनाने का प्रयत्न होता है। अच्छा गुरु वह होता है जो शिष्य के मस्तिष्क में जिज्ञासा उत्पन्न करे तथा रचनात्मक कार्यों एवं शोध के लिए उनको प्रेरित कर सके। धर्म तथा संसार दोनों के कल्याण के लिए ज्ञान के महत्व को जागृत कर दे।

गुरु का उत्तर दायित्व है कि वे अपने शिष्यों को ज्ञान प्राप्ति के लिए जिज्ञासु बना दे। उनके मानक क्षितिज को विशालता प्रदान करे और साथ ही साथ उत्तम आचरण, स्वच्छता, ईश्वर के प्रति निष्ठा, दयालुता, न्याय और मानव सेवा की भावना को भी प्रेरित करे। उन्हें चाहिए कि छात्रों को बताएं कि संस्कृति क्या है?उन्हें बताया जाए कि दूसरों के साथ ऐसा व्यवहार करें जैसा हम स्वयं अपने साथ चाहते हैं। शिष्यों को यह भी सिखाएं कि किस प्रकार स्वार्थ पर अंकुश लगाएं तथा विपत्ति के समय दूसरों की सहायता करें।

प्रस्तुतकर्ता : इज़हार -उल -हक

अलीगढ

://rudragiriji।net/

1 comment:

Anonymous said...

Khoobsurat vichaar hain.
Swami Vivekananda ne bhi kaha hai ki maata pita ne to sirf ye shrir diya hai par Guru to mukti ka path batlaate hai isliye Guru ko mata pita se bhi badh kar izzat do.